गीतिका/ग़ज़ल

गलियों में भेड़िये

अब तो गलियों में आकर ही रहने लगे हैं-
ये भेड़िये, आदमी खुद को कहने लगे हैं ।
कल अहंकार में थे, जो पर्वत से ऊँचे-
अब, पहाड़ों की भाँति ही, ढहने लगे हैं ।
फल, मिलने लगा है, जो वो बो रहे थे-
प्रभु को याद कर हम सितम सहने लगे हैं ।
अपने कर्मों से चलते हैं, बुद्धि, समय भी-
जो खरीदे थे कल ही, बेचने गहने लगे हैं ।
लो आत्मा ढक गयी, तन-मन नंगे हुए हैं-
दिखती चमड़ी, मगर कपड़े पहने लगे हैं ।
अनोखे जमाने में, दम घुट रहा है हवा का-
अब तो पत्थर भी पिघल कर बहने लगे हैं ।
— प्रमोद गुप्त

प्रमोद गुप्त

कवि, लेखक, पत्रकार जहांगीराबाद (बुलन्दशहर) उ. प्र. मोब. -97 593 29 229 - नवम्बर 1987 में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं । - उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मोनो एक्सप्रेस, अमृत महिमा, नव किरण, जर्जर कश्ती, अनुशीलन, मानव निर्माण, विश्व विधायक, वर्तमान केसरी, शाह टाइम्स, युग करवट बुलन्द संदेश, बरन दूत, मुरादाबाद उजाला, न्यूज ऑफ जनरेशन एक्स, किसोली टाइम्स, दीपक टाइम्स, सिसकता मानव,आदि देश के अनेक स्तरीय समाचार पत्र व पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में- मेरी निजी/मौलिक रचनाएँ आदि निरन्तर प्रकाशित होती चली रही हैं । - विभिन्न कवि सम्मेलनों में कविता पाठ एवं अनेक कवि सम्मेलनों का आयोजन । - "प्रमोद स्वर" पाक्षिक समाचार पत्र का लगभग निरंतर 22 वर्ष सफल सम्पादन व प्रकाशन । - कई स्तरीय समाचार-पत्रों के संवाददाता-प्रतिनिधि के रूप में समय-समय पर कार्य किया । -वर्तमान में- संवाददाता-दैनिक पहल टू डे, गाज़ियाबाद (उ.प्र.) जिला संयोजक-संस्कार भारती । पटल संस्थापक व संचालक- संस्कार भारती जहाँगीराबाद