सामाजिक

जीते जी करें माँ-बाप की सेवा : न करें मृत्यु भोज पर बाहरी दिखावा

आधुनिक युग में व्यक्ति भौतिकवादी विचारों का शिकार हो चुका है, आज हम अपने माँ-बाप की सेवा उनके जीते जी नहीं करते हैं। और उनकी मृत्यु के बाद मृत्यु भोज का बड़ा आयोजन करते हैं। मेरा मानना है कि हमें जीते जी ही अपने माँ-बाप को वह सब सुख- सुविधाएं, मान -सम्मान, देखभाल और समय देना चाहिए। माँ-बाप की मृत्यु के पश्चात, मृत्यु भोज करने का कोई औचित्य नहीं है। माना कि यह एक प्रथा है, और सदियों से चली आ रही है। ऐसा भी माना जाता है कि इसके बिना हम पित्र ऋण से उऋण नहीं हो पाते हैं। किंतु यदि व्यावहारिक दृष्टि से सोचा जाए तो हमें अपने बुजुर्गों की सेवा सुश्रुषा उनके जीवन के रहते हुए ही करनी चाहिए। उनकी मृत्यु के पश्चात यह दिखावा मात्र ही है,कि हम बड़े पैमाने पर मृत्यु भोज का आयोजन करें। सारी दुनिया को यह दिखाने का प्रयत्न करें कि हम उन्हें कितना प्रेम करते हैं। ऐसी कुप्रथा को बंद कर देना चाहिए ।क्योंकि अधिकांशत यह देखा गया है, कि गरीब व्यक्ति कर्ज लेकर भी इस आयोजन को करवाता है। यदि हम सक्षम नहीं हैं, तो समाज की कोई ऐसी बाध्यता नहीं होनी चाहिए। चंद पंक्तियाँ बुजुर्गों के लिए-
घर के बुजुर्गों का सदा करो मान-सम्मान,
जीते जी कभी नहीं करो इनका अपमान,
यही घने छायादार तरुवर हैं गृह-उपवन के,
कुटुंब के लिए इनका सानिध्य है वरदान।
— प्रीति चौधरी “मनोरमा”

प्रीति चौधरी "मनोरमा"

पिता का नाम श्री सतेन्द्र सिंह माता का नाम श्रीमती चंद्रमुखी देवी जन्म स्थान ग्राम राजपुर,पोस्ट मलकपुर (बुलन्दशहर) पति का नाम श्री सुभाष सिंह डबास स्थायी पता श्रीमती प्रीति चौधरीW/o श्री सुभाष सिंह डबास ग्राम+पोस्ट लाड़पुर तहसील स्याना बुलंदशहर(यू०पी०) पिन कोड 203402 फ़ोन नंबर 9719063393 जन्मतिथि 05/08/1985 शिक्षा बी०ए०,एम०ए०,बी०एड०, विशिष्ट बी०टी०सी० व्यवसाय अध्यापन प्रकाशित रचनाओं की संख्या लगभग 66 प्रकाशित पुस्तकों की संख्या आखर कुँज(साझा संग्रह), स्वरांजलि(साझा संग्रह), रत्नावली(साझा संग्रह) प्रकाशनाधीन साझा संग्रह मैं निःशब्द हूँ (साझा संग्रह) हे भारत भूमि(साझा संग्रह) उन्मुक्त परिंदे (साझा संग्रह), नवकिरण (साझा संग्रह) काव्य सृष्टि (साझा संग्रह) शब्दों के पथिक (साझा संग्रह) सम्मान का विवरण साहित्य शिरोमणि सम्मान, स्वामी विवेकानंद साहित्य सम्मान, माँ वीणापाणि साहित्य सम्मान आदि।