सामाजिक

प्रेम

प्रेम भी एक रूमानियत है वासना प्रेम का एक अंग है  प्रेम  एक रुहानियत है
शरीर से प्रेम करने बाला प्रेम वासना का प्रेम होता है ।
अगर रुहानियत से ही सब प्रेम करेंगे तो सृष्टि का विकास नहीं होगा,
जिस्मानी प्रेम से ही संसार का विकास हुआ है !
प्रेम कोई बंधन नहीं जिसे आप कैद करके रख सकें ,प्रेम एक मन है ,विचार है, रुह है ,और आत्मा की खुशी है ! जिसे हम संतुष्ट होकर खुद को खुश महसूस करते हैं।
प्रेम अगर रुहानियत है तो जिस्मानी प्रेम क्यों बनाया है।
एक लड़की दूसरी लड़की से प्रेम कर खुश रह सकती है ।
एक लड़का भी दूसरे लड़के के साथ खुश रह सकता है।
लेकिन यहाँ प्रेम एक वासना में भी जागृत है क्योंकि उसी से सृष्टि का विकास संभव है रुहानियत से नहीं ।
एक स्त्री का विवाह एक पुरुष से करा दिया जाता है क्योंकि जब स्त्री का मिलन पुरुष से होता है तभी संसार का विकास होता है।
ये जरुरी नहीं कि पति- पत्नी एक दूसरे को आत्मिक प्रेम ही करते हों ,लेकिन फिर भी साथ रहते हैं ।
क्या कभी देखा है कि स्त्री खुल कर आज़ादी से जी रही हो ,क्योंकि पुरुष के पास विकल्प है अपनी गलती छुपाने का ,वो कितनों के साथ है पता नहीं चलता ।लेकिन स्त्री कभी नहीं छुपा सकती क्योंकि उसके पास छुपाने और चोरी करनें जैसी कोई चीज है ही नहीं ।
शादी के बाद पुरुष अपनी स्त्री को एक सुरक्षा प्रदान करता है। क्योंकि वो डरता है अपने सम्मान और इज्जत के लिये क्योंकि स्त्री के साथ अगर कोई रिश्ता किसी से बन जाता है या स्त्री किसी दूसरे पुरुष से रिश्ता बनाती है तो कभी छुपाया नहीं जा सकता ,लेकिन पुरुष हमेशा स्त्री को दोषी ठहराते हैं ,जब कि स्त्री सत्य है ,पुरुष एक झूठ या धोखा ।
लेकिन बस विश्वास के भरोसे व्यक्ति एक दूसरे के साथ रहता है जो कि विश्वास एक ईश्वर समझ लो या अपने साथ न्याय जो सच के साथ है वो जीत के साथ है।
इसीलिये पुरुष स्त्री को अपने सुरक्षा घेरे में कैद रखता है लेकिन रुहानियत प्रेम खुद किया जाता है किसी से जबरन कराया नहीं जा सकता ।
या फिर प्रेम रुहानियत हो या जिस्मानी प्रेम कराया नहीं जा सकता केवल किया या फिर भोगा जा सकता है।
अगर शारीरिक प्रेम को भूख की तरह बनाया  है की किसी भी स्त्री के साथ संबंध रखे तो प्रेम नहीं वासना ही है।
यहाँ एक सवाल खड़ा हो जाता है अगर रुहानियत प्रेम को पवित्र माना है तो संसार को विकसित नहीं किया जा सकता ।
संसार का विकास करने के लिये ,प्रेम ,वासना और संतुष्टि ये सब एक में मिल कर ही सृष्टि का विकास कर पाते हैं  रुहानियत प्रेम से कभी सृष्टि का विकास नहीं कर सकते ।
इसलिए प्रेम कोई भी अपवित्र नहीं है।
केवल वासना की अधिक भूख अपवित्र है जो क ईयों से मिटाई जाती है ,उसे हवस और गंदगी कहते है वासना भी नहीं ,क्योंकि वासना प्रेम एक जिस्मानी प्रेम में भी निभानी पड़ती है।
— शिखा सिंह 

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail Shikhafth@gmail.com