कविता

कोहरे की अब दादागीरी

लगा माघ शीत अति भारी,

कैसे बिताऊँ ठंढ अनियारी।

हाड़   कांपै   अग्नी   सीरी,

कोहरे  की  अब  दादागीरी।

शीत    मीत    पवन   देव,

निकल  पड़े  हैं  धीरे  धीरे।

अवसर देख मेघ आ धमके,

बूंदे   झरती     धीरे    धीरे।

दिन रात में नाहीं कोई अंतर,

दिनकर   मानो   छू   मंतर।

–अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र

शिक्षाविद,कवि ,लेखक एवं ब्लॉगर