लघुकथा

कर्मठ

अक्षरा जैसे ही आफिस से आई देखा मम्मा बिस्तर पर सोई हैं। अचानक जाकर सिर पर हाथ रखकर पूछा, “क्या हुआ, ठीक तो हैं।”
तभी दोनो छोटी बच्चियां प्रज्ञा और विद्या भी खेलकर आ गयी, क्या हुआ नानी को ?
70 वर्षीय नानी अभी तक घर बाहर हर तरफ अपनी रेस जारी रखती थी, तलाकशुदा बेटी नौकरी पर व्यस्त रहती थी। दोनो नातिन प्रज्ञा, विद्या नानी के साथ मस्त रहती थी।
घर के हर छोटी मोटी चीज खराब होते ही फ़ोन करना, गैस, फ्रीज, वाशिंग मशीन सब नांनी के ही जिम्मे था। घर मे कोई पुरुष तो था नही। बेटी अक्षरा सब जानती थी कि मम्मा ने जवानी में बहुत कष्ट सहा है, पापा चालीस वर्ष के ही थे, और शराब की आदत ने उन्हें खोखला कर दिया और वो स्वर्गवासी हो गए। मम्मा ने कभी किसी से छुपाया नही, साफ बोला, उनके जाने के बाद मैंने जाना जीवन की खुशियां क्या होती है। उन्होंने तो पत्नी को गुलाम बना कर रखा था, पर बाद में गजेटेड अफसर बेटी ने मुझे हर खुशी दी।
आज वही अक्षरा की मम्मा बिस्तर पर निढाल पड़ी थी, पता नही कैसे , उनकी छठी इन्द्रिय ने उन्हें इत्तला दी। उन्होंने बेटी को बुलाकर कहा, “सुनो, मुझे ऑर्गन्स डोनेट करने हैं, प्लीज फ़ोन करो।”
बेटी ने फ़ोन किया। दो ऑफिसर्स फॉर्म लेकर घर ही आ गए, बहुत देर तक बैठकर पूछताछ करते रहे, उन्होंने अपनी आंखें, लिवर किडनी सब दान करने का फॉर्म भरवा दिया, किसी तरह सिग्नेचर भी कर दिए।
थोड़ा बहुत रात में खाकर सोई और सुबह उनकी आंखें नही खुली।
अक्षरा मन ही मन सोच रही थी, जीवन भर मम्मा कर्म करती रहीं, अब उनके अंग भी क्रियाशील ही रहेंगे।
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर