किसी विषय का पूर्ण किन्तु संक्षिप्त और सरल परिचय देना ही निबंध लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है| निबंध शब्द ‘बंध’ शब्द के पहले ‘नि’ उपसर्ग लगने से बना है जिसका अर्थ होता है अच्छी तरह बाँधना – “सुबंधन” | यह कार्य तभी अच्छी तरह से पूरा होता है जब लेखक को विषय की […]
Author: नसरीन अली 'निधि'
संत विनोबा भावे ( हिंदी के अनन्य भक्त )
हिंदी के अनन्य भक्त संत विनोबा भावे “मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूं परंतु मेरे देश में हिंदी की इज़्ज़त न हो यह मैं सहन नहीं कर सकता |” यह उद्गार है उच्च कोटी के विचारक दार्शनिक समाजसेवी एवं सर्वोदय पदयात्रा और भूदान के महान प्रवर्तक संत विनोबा जी के नाम […]
एक गज़ल
सितारों की आरजू में शरारे मिले| गौरों से मिलकर देखा हमारे मिले || कैसे यकीन कर ले इस दुनिया पर हम| दुश्मन ही दोस्तों से प्यारे मिले|| छत के नीचे देखो तो सब लगते है अपने| देखा तो हर आँगन में दीवारें मिले|| मरती नही कभी अपनी मौत ये जिंदगी| कब्र में देखा तो सब […]
“ लक्ष्य और दायित्व ”
“ लक्ष्य और दायित्व ” मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसी समाज में रहते हुए उन्हें अपने उत्तरदायित्व को निभाना पडता है जिसमें दो बातें प्रथम रूप से आती है…. पहला अपने जीवन का लक्ष्य और दूसरा उस लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हुए अपने समाज- परिवार के रिश्तों को समझना, परन्तु लक्ष्य पाने का […]
ग़ज़ल – पतवार
कैसा यह संसार है बाबा , पैसा है तो प्यार है बाबा || टूटी हूई पतवार है बाबा , और जाना उस पार है बाबा || पहले यह दुनिया , दुनिया थी , अब काला बाज़ार है बाबा || झूठ से जब इज्जत मिलती है | सच कहना बेकार है बाबा || जिसको जो चाहे […]
ग़ज़ल – दुआ
जाने कहाँ से आया था, जाने किधर गया आये न आये, आने का वादा तो ‘कर’ गया अकसर स्वतंत्र होते ही, उँचा उठा धुँआ जिसने धुएँ को कैद किया, घुट कर ‘मर’ गया अब सिर्फ कल्पनाओं में, उड़ता रहेगा वो ऊँची ऊड़ान में ही, परिंदे का ‘पर’ गया सोना समझ कर लाए थे, सोना नहीं है वो उसके गले के हार का, पानी […]
हास्य व्यंग्य……..हवा खाईये…
‘‘हवा खाईये” शीर्षक पढ़्कर घबरा तो नहीं गये,घबराईये नहीं ,हम तो आपको सुबह की ताजी ताजी मधुर मधुर , भीनी भीनी माटी सुगंधित हवा खाने की बात कह रहे है | आप क्या समझें, कहीं हम आपको हवालात या पागलखाने की हवा खाने को तो नहीं कह रहें हैं| अरे नहीं जनाब, बात यूँ है […]
अज़ात आत्मा….. सूफ़ी और संत
अजात आत्मा सूफ़ी और संत प्रेम, इश्क ,मुहब्बत ,प्यार आखिर इन आधे अक्षरोँ मेँ ऐसा क्या है कि प्यार से गुजरकर इंसान वो नहीँ रहता जो इश्क करने से पहले होता है………. जीवन का सही अर्थ प्रेन मेँ ही समझ मेँ आता है ,,, फिर सारी जानकारी अनुभव बनने लगती है और अनुभव […]
कविता : आज का मानव
आज का मानव “ आज का मानव ” आज, हरेक के जेब में मानव आज, हरेक के पेट में मानव, निकला है पेट से मानव मर रहा है पेट के लिए मानव, सड़क पर लेटा है मानव अंतरिक्ष पर क्रीड़ा कर रहा है मानव, मशीन बन रहा है मानव समुंद्र की लहरें गिन […]
बाल-साहित्य
बच्चों की आवश्यकताएँ सर्वव्यापी है , जहाँ उन्हें ज्ञान देने की आवश्यकता है , वही उन्हें सम्मान देने की भी आवश्यकता हैं| उन्हें संस्कारी बनाना है तो उसे सुविचारी भी बनाना है , उन्हें परम्परा और परिपाटी से परिचित कराना है तो स्वयं करने और सीखने के मौके को भी दिये जाना हैं| उनको विवेकशील […]