अनवरत चलते रहें हम भूल बैठे मुस्कुराना है यही अनुरोध तुमसे बस ख़ुशी के गीत गाना। फर्ज की चादर तले, कुछ मर गए अहसास कोमल पवन के ही संग झरते शाख के सूखे हुए दल रच गया बरबस दिलों में औपचारिकता निभाना है यही अनुरोध तुमसे बस ख़ुशी के गीत गाना नित सुबह से शाम ढलती दंभ,दरवाजे खड़ा […]
Author: शशि पुरवार
ग़ज़ल
साल नूतन आ गया है कुछ नया करके दिखाओ स्वप्न आँखों में सजाकर हौसलों के गीत गाओ द्वेष, कुंठा, खूँ-खराबा रात्रि गहराने लगी है लाख गहराये अँधेरा एक दीपक तुम जलाओ तोड़ दो खामोशियों को जुल्म को सहना नहीं है जुल्म के हर वार रोको भीत नफरत की हटाओ खिड़कियों से झाँकती जो एक टुकड़ा […]
नवगीत
आस्था के नाम पर, बिकने लगे हैं भ्रम कथ्य को विस्तार दो , यह आसमां है कम . लाल तागे में बंधी विश्वास की कौड़ी अक्ल पर जमने लगी, ज्यों धूल भी थोड़ी नून राई, मिर्ची निम्बू द्वार पर कायम द्वेष, संशय, भय हृदय में जीत कर हारे पत्थरों को पूजतें, बस वह हमें तारे […]
गीतिका : भारत की पहचान है हिंदी
भारत की पहचान है हिंदी हर दिल का सम्मान है हिंदी. जन जन की है मोहिनी भाषा समरसता की खान है हिंदी. छन्दों के रस में भीगी ये गीत गजल की शान है हिंदी. ढल जाती भावों में ऐसे कविता का सोपान है हिंदी. शब्दों का अनमोल है सागर सब कवियों की जान है हिंदी. […]
गजल
जिंदगी जब से सधी होने जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी डूब कर हमने जिया हर काम को काम से ही अब अली होने लगी हारना सीखा नहीं हमने यदा दुश्मनो में खलबली होने लगी नेक दिल की बात करते है चतुर हर कहे अक से बदी होने लगी चाँद पूनम का खिला जब यूँ […]
ग़ज़ल
फूल बागों में खिले ये सबके मन भाते भी हैं। मंदिरों के नाम तोड़े रोज ये जाते भी हैं। चाहे माला में गुंथे या केश की शोभा बने टूट कर फिर डाल से ये फूल मुरझाते भी हैं। इन का हर रूप-रंग और सुरभि भी पहचान है डालियों पर खिल के ये भौरों को ललचाते […]
गजल
फूल बागों में खिले ये सबके मन भाते भी हैं। मंदिरों के नाम तोड़े रोज ये जाते भी हैं। चाहे माला में गुंथे या केश की शोभा बने टूट कर फिर डाल से ये फूल मुरझाते भी हैं। इन का हर रूप-रंग और सुरभि भी पहचान है डालियों पर खिल के ये भौरों को ललचाते […]
ग़ज़ल
जिंदगी जब से सधी होने लगी जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी डूब कर हमने जिया हर काम को काम से ही अब अली होने लगी हारना सीखा नहीं हमने यदा दुश्मनो में खलबली होने लगी नेक दिल की बात करते है चतुर हर कहे अक से बदी होने लगी चाँद पूनम का खिला जब […]
ग़ज़ल
मेरी साँसों में तुम बसी हो क्या पूजता हूँ जिसे वही हो क्या थक गया, ढूंढता रहा तुमको नम हुई आँख की नमी हो क्या धूप सी तुम खिली रही मन में इश्क में मोम सी जली हो क्या राज दिल का,कहो, जरा खुलकर मौन संवाद की धनी हो क्या आज खामोश हो गयी कितनी […]
कविता : शान्ति की तलाश में
बाहर की आवाजों का शोर, सड़क रौंदती गाड़ियों की चीख जैसे मन की पटरी पर धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी और इन सब से बेचैन मन शोर शराबे से दूर, एक बंद कमरे में छोड़ा मैंने बोझिल मन को , निढाल होते तन के साथ नर्म बिस्तर की बाहों में शांति से बात करने के लिए पर […]