जब भी देखूं , आतप हरता । मेरे मन में सपने भरता । जादूगर है , डाले फंदा । क्या सखि, साजन ? ना सखि , चंदा। 1 लंबा कद है , चिकनी काया । उसने सब पर रौब जमाया । पहलवान भी पड़ता ठंडा । क्या सखि, साजन ? ना सखि , डंडा । […]
Author: त्रिलोक सिंह ठकुरेला
खुशियों के गन्धर्व
खुशियों के गन्धर्व द्वार द्वार नाचे । प्राची से झाँक उठे किरणों के दल , नीड़ों में चहक उठे आशा के पल , मन ने उड़ान भरी स्वप्न हुए साँचे । फूल और कलियों से करके अनुबंध , शीतल बयार झूम बाँट रही गंध , पगलाये भ्रमरों ने प्रेम – ग्रंथ बाँचे । – त्रिलोक […]
मिलकर पढ़ें वे मंत्र
आइये , मिलकर पढ़ें वे मंत्र । जो जगाएं प्यार मन में , घोल दें खुशबू पवन में , खुशी भर दें सर्वजन में , कहीं भी जीवन न हो ज्यों यंत्र । स्वर्ग सा हर गाँव घर हो , सम्पदा-पूरित शहर हो , किसी को किंचित न डर हो , हर तरह मजबूत हो […]
हरसिंगार रखो
मन के द्वारे पर खुशियों के हरसिंगार रखो. जीवन की ऋतुएँ बदलेंगी, दिन फिर जायेंगे, और अचानक आतप वाले मौसम आयेंगे, संबंधों की इस गठरी में थोडा प्यार रखो. सरल नहीं जीवन का यह पथ, मिलकर काटेंगे , हम अपना पाथेय और सुख,दुःख सब बाँटेंगे, लौटा देना प्यार फिर कभी, अभी उधार रखो. – त्रिलोक […]
करघा व्यर्थ हुआ
करघा व्यर्थ हुआ कबीर ने बुनना छोड़ दिया । काशी में नंगों का बहुमत , अब चादर की किसे जरूरत , सिर धुन रहे कबीर रूई का धुनना छोड़ दिया । धुंध भरे दिन काली रातें , पहले जैसी रहीं न बातें , लोग काँच पर मोहित मोती चुनना छोड़ […]
बिटिया
बिटिया ! जरा संभल कर जाना , लोग छिपाये रहते खंजर । गाँव , नगर अब नहीं सुरक्षित दोनों आग उगलते , कहीं कहीं तेज़ाब बरसता , नाग कहीं पर पलते , शेष नहीं अब गंध प्रेम की , भावों की माटी है बंजर । युवा वृक्ष कांटे वाले हैं करते हैं मनभाया , […]
मुकरियाँ
खरी खरी वह बातें करता । सच कहने में कभी न डरता । सदा सत्य के लिए समर्पण। क्या सखि ,साधू ? ना सखि, दर्पण । हाट दिखाये , सैर कराता । जो चाहूँ वह मुझे दिलाता । साथ रहे तो रहूँ सहर्ष । क्या सखि, साजन ? ना सखि , पर्स । जब देखूं […]
कविता : करघा व्यर्थ हुआ
करघा व्यर्थ हुआ कबीर ने बुनना छोड़ दिया । काशी में नंगों का बहुमत , अब चादर की किसे जरूरत , सिर धुन रहे कबीर रूई का धुनना छोड़ दिया । धुंध भरे दिन काली रातें , पहले जैसी रहीं न बातें , लोग काँच पर मोहित मोती चुनना छोड़ […]
कविता – बिटिया
बिटिया ! जरा संभल कर जाना , लोग छिपाये रहते खंजर । गाँव , नगर अब नहीं सुरक्षित दोनों आग उगलते , कहीं कहीं तेज़ाब बरसता , नाग कहीं पर पलते , शेष नहीं अब गंध प्रेम की , भावों की माटी है बंजर । युवा वृक्ष कांटे वाले हैं करते हैं मनभाया , […]
कुछ मुक्तक
1 . जीवन एक कठोर धरातल , माँ होती है नर्म बिछोना । सारे दुःख -दुविधा हर लेती , माँ होती है जादू-टोना । थोड़ी धूप ,छाँव थोड़ी सी ,और प्रेम की अविरल धारा , कुशल क्षेम से रखे सदा ही , माँ घर का वह प्यारा कोना । 2 . पाँव थक जाते मगर मन […]