फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
हर कदम पर मुझे दबाने का प्रयास किया जा रहा है
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
सुरक्षित मेहसूस नहीं करती हूँ मैं इस सभ्य समाज में
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
मुझे इस पुरुष प्रधान समाज में उपभोग कि वस्तु समझा जा रहा है
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
असमानता बढती जा रही है मेरे लिए
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
पुरातन काल से भेदभाव की शिकार हूँ मैं
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
हर एक गंदी नज़र से हर कदम पर बचना पड़ता है मुझे
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
ताने, घ्रणा, कुंठा सहकर मैं परेशान हूँ
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
मुझे बेशक कोख में ही मार दिया जाता है
फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
आज चाहे जो भी हूँ मैं पर मुझे गर्व है अपने आप पर
मुझे गर्व है एक माँ होने पर
मुझे गर्व है मुझसे भेदभाव करने वाले इस समाज का निर्माण करने पर
मुझे गर्व है एक नारी होने पर
चाहे कुछ भी हो जाए ये गर्व बना रहेगा ऐसे ही
समाज, चाहे हो भी सोचे जो भी कहे
मेरा मान मेरी नज़रों से गिरेगा नहीं
मेरा स्वाभिमान कभी डिगेगा नहीं
मेरा गर्व कभी कम नहीं होगा.
चाहे कुछ भी है, फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है!
-अश्वनी कुमार
कविता बहुत ही अच्छी है . जिस तरह इस्त्री का निरादर हो रहा है दुख्दाएक है लेकिन जब अपनी माँ को देखते हैं तो औरत लफ्ज़ के माने बदल जाते हैं कियों ?
उत्तम विचार ! श्रेष्ठ कविता !!