भूला भटका सा
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आज दिल कर रहा है
कुछ याद करूं
अपना ही भूले-भटके
हुये गुनाहों को
खुद से ही फ़रियाद करू
जो गुनाह किये
आखिर क्यों किये
जो फल भुगता वह
किस गुनाह का था
कुछ चिंतन करूं
कितने बड़े गुनाह की
कितनी छोटी सजा मिली
कुछ तो था रहम प्रभु का
कुछ तो उसको मै
इसका धन्यवाद करूँ
क्यों कोसू किसी को
ना कुछ पाने पर
जो पाया है क्यों ना
उसका धन्यवाद करूँ
आज दिल कर रहा है
कुछ तो भूला- भटका सा
याद करूँ |
|| सविता मिश्रा ||
अच्छी कविता !
बहुत बहुत शुक्रिया भैया