कविता

भूला भटका सा


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आज दिल कर रहा है
कुछ याद करूं
अपना ही भूले-भटके
हुये गुनाहों को
खुद से ही फ़रियाद करू
जो गुनाह किये
आखिर क्यों किये
जो फल भुगता वह
किस गुनाह का था
कुछ चिंतन करूं
कितने बड़े गुनाह की
कितनी छोटी सजा मिली
कुछ तो था रहम प्रभु का
कुछ तो उसको मै
इसका धन्यवाद करूँ
क्यों कोसू किसी को
ना कुछ पाने पर
जो पाया है क्यों ना
उसका धन्यवाद करूँ
आज दिल कर रहा है
कुछ तो भूला- भटका सा
याद करूँ |
|| सविता मिश्रा ||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “भूला भटका सा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

    • सविता मिश्रा

      बहुत बहुत शुक्रिया भैया

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