लघुकथा

++पिता लाडली ++

शिखा अपने पड़ोसन अमिता और बच्चो के साथ पार्क में घुमने गयी. चारो बच्चे दौड़ भाग करने में मशगुल हो गये. शिखा भी अमिता के साथ गपशप करने लगी. गाशिप करते हुए समय का पता ही ना चला. पता तब चला जब घर पर पहुँच शिखा के पति उमेश का फोन आया. शिखा अपने बच्चो को आवाज दी …. ‘श्रेया, मुदित, जल्दी आओ, घर चलना है.’ दोनों दौड़े दौड़े माँ के पास पहुंचे ही थे कि माँ उनके दोनों हाथो में पार्क के सुंदर सुंदर फूल देख ठगी सी इधर उधर देखने लगी. कोई पार्क का पहरेदार देख गुस्सा ना करने लगे.

तभी अचानक श्रेया से अमिता का बेटा रोहित दौड़ते हुए आते समय भिड़ गया. श्रेया जमींन पर गिर गयी, जिसके कारण उसके घुटने छिल गये. वह जोर जोर से रोने लगी. शिखा और अमिता दोनों उसे चुप कराने और चोट पर फूंक मारने लगे. अमिता उसे चुप कराते हुए बोली बेटा, ‘देखो तुम्हें चोट लगी तो हम सब को दुःख हुआ. इसी तरह तो तुम्हारे फूल तोड़ लेने से पौधे को भी दुःख हुआ होगा न. फूल और पौधा दोनों रोये होंगे.’

श्रेया भिनक गयी, ‘हमें चोट लगी और आप दोनों को पौधे फूल की पड़ी है. आप दोनों ही गंदे हो. पापा से बोलूगी मैं.’

शिखा मुस्कराते हुए बोली, ‘अच्छा बाबा, चलो घर, बता देना पापा की लाडली .’

शिखा बच्चो के साथ घर आ गयी. घर में श्रेया पापा से रो रो बताने लगी. पापा ने मरहम पट्टी करी और उसे संतुष्ट करने के लिय माँ को भी डांट लगाई| उमेश बात करते करते श्रेया को घर के बाहर ले आये. बाहर खड़े कैक्टस में से एक पत्ती तोड़ बोले देखो बेटा इसको भी चोट पहुंची न. पत्ती और पेड़ के बहते हुए पानी को दिखा बोले, ‘देखो पत्ती और पेड़ दोनों आंसू बहा रहे है न.’ श्रेया समझ गयी कि पेड़ पौधो को भी दुःख होता है. उसने पापा और माँ के सामने संकल्प लिया कि आइन्दा से कभी किसी पौधे को कष्ट नहीं पहुंचाएगी. आगे चलकर वह वनस्पति विज्ञान की बहुत अच्छी प्रोफेसर बनी .

……सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “++पिता लाडली ++

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी. माँ बाप अगर समझदार हों तो बच्चे भी सही राह पर चलते हैं.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अगर सभी लोग अपने बच्चों को इसी ढंग से समझाएं तो बच्चे समझदार बनेंगे . शिक्षा देने वाली कहानी , बहुत अच्छी है .

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