कविता

क्षणिकाएं

१. गम का बाजार
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परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि
हमारें अश्रु मोती बन बहे
हुई जटिल समस्या कि
अब रोके ना रुकें
गम के इस बाजार में
गम ही हमको मिले |

२. आईना
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आईना को जब हमने
आईना दिखाना चाहा तो
आईना भी शर्मसार हो गया
आईने के सामने से हट गया |
आईना कों जब हमने उसके
उसूलों को समझाया तो
वह कुपित होकर
चकनाचूर हो गया |

||सविता मिश्रा ||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “क्षणिकाएं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी क्षणिकाएं !

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