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एमएसीटी एक्ट में संशोधन आवश्यक

सुझाव

बिना हेलमेट वाले – दुर्घटना में घायल हुए या  मृतक – व्यक्तियों को एम ए सी टी एक्ट का कोई लाभ नहीं दिया जाना चाहिये।

प्रस्तावना

पिछले 40 सालों से दुपहिया वाहनों के चालकों और पीछे बैठने वालों को हेलमेट लगाये जाने के कानून बनने के बाद भी मुश्किल से 5% लोग ही इसका पालन करते हैं। और, ऐसी दुर्घटनाओं में 75% मरने वाले लोग वही होते हैं जिन्होने हेलमेट नहीं लगाया होता है। पुलिस वाले भी इस लापरवाही का भरपूर फ़ायदा उठाते हैं, और कुछ चालानों से भी कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दिखाई दिया है।

एमएसीटी एक्ट मेँ  नो फ़ाल्ट लाइबिलिटी के प्रावधान से ऐसी दुर्घटनाओं में प्रत्येक व्यक्ति को कुछ ना कुछ पैसा तो मिल ही जाता है, यद्यपि सच्चाई यह है कि ऐसे घोषित किये जाने वाले पैसे का एक बड़ा हिस्सा खुले आम बंदर बाँट होता चला आ रहा है!

मरने वाले के संबंधियों को कुशल वकील स्वयम ही सम्पर्क करके अपना और कथित रूप से ऊपर वालों का हिस्सा तय कर लेते हैं। इस सच्चाई को आज सब जानते हैं कि ऐसी विशेष अदालतों में और उनके आस-पास दलालों-वकीलों का बहुत बड़ा संगठित व्यवसाय चलता है। कागज पर जारी किये गये पैसे का 25% ही शायद संबद्ध व्यक्ति को मिल पाता होगा, जबकि 75% सही और सुरक्षित तरह से बाँट लिया जाता है।

इससे जहां एक ओर हेलमेट ना लगाने को बढ़ावा मिलता चला जा रहा है, वहीं पब्लिक के पैसे की अंधाधुन्ध बरबादी होती चली जा रही है।

यदि अच्छी क्वालिटी का हेलमेट लगाये हुए या उसके पीछे बैठे व्यक्ति का कोई बहुत गंभीर एक्सिडेंट भी क्यों ना हो जाये, 95% मामलों में उसकी मौत होना असंभव है। परंतु, बिना हेलमेट के तो मरने वालों की संख्या भी बहुत ज़्यादा होती ही है।

एक बेरोजगारी से त्रस्त देश में  यदि ऐसी मोटी आमदनी वाला क़ानून बरकरार रहता है, तो कोई बड़ी बात नहीं कि माँ-बाप भी अपने बच्चों को हेलमेट के लिए कहने से बचना ही अच्छा समझेंगे।

एक तो वैसे ही कम उम्र के लड़कों में अपनी गर्ल-फ्रेंड या दोस्तों को शान दिखाने की प्रवृत्ति होती है, और फिर पुलिस से उन्हें कोई डर भी नहीं होता है। इसी लिए वे अगर हेलमेट ले कर चलते भी हैं, तो बस उसे पीछे वाले को पकड़ा देते हैं, और चेकिंग होने वाली जगहों से ज़रा पहले यूं ही सिर पर रख कर फौरन ही उतार देते हैं। 

अब, आप चाहे कितने ही क़ानून क्यों ना बना लें, ऐसी घटनाओं में होने वाले जान-माल के नुकसान की भरपाई असंभव ही रहेगी। कितने ही नौजवानों को मैंने स्वयम ऐसी मामूली दिखने वाली दुर्घटनाओं के 24-48 घंटे के अन्दर मरते हुए देखा है। और, इसके विपरीत जब मैं अपनी पिछली 45 वर्षों की दुपहिया चालन की अवधि में हुई 10 से अधिक गंभीर दुर्घटनाओं के बाद भी अपने आप को पूर्ण रूप से स्वस्थ देखता हूँ, तब उसका श्रेय ईश्वर से पहले हेलमेट को ही देना अधिक उचित एवं तर्कसंगत लगता है।

यदि हम इस क़ानून से मिलने वाले लाभों हेतु हेलमेट ना लगाये व्यक्तियों को अवैध  घोषित कर देंगे तो बहुत अधिक संभावना है कि एक ओर हमारी नवयुवकों की शारीरिक क्षतियों में बहुत बड़ी कमी आ जाएगी, वहीं दूसरी ओर ऐसी दुर्घटनाओं में होने वाले 75% पैसे का बंदर-बाँट भी बंद हो जाएगा।

2 thoughts on “एमएसीटी एक्ट में संशोधन आवश्यक

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका सुझाव विचारणीय है, कर्नल साहब. जो सुविधा वास्तविक पीड़ितों को मिलनी चाहिए उसे लपका लोग लपक लेते हैं. इस पर रोक लगनी ही चाहिए.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अनूप भाई , आप सही कहते हैं कि हैल्मट बचाव् के लिए बहुत अच्छी है , इस से क्मज्क्म जान से आदमी बच ही जाता है . दुसरे जो कम्पैन्सेशन मिलत है टोटली बंद होना चाहिए . जो बन्दर बांट के बारे में लिखा है , मुझे इतना दुःख होता है मुझे पचास वर्ष हो गए देश छोड़े को लेकिन कुराप्शन में कोई सुधार नहीं आया . this is a lawless country.

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