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जीवन के अंतिम प्रहर में अपने घर में अलग थलग पड़ जाते है घर के बुजुर्ग कुसूर स्वयं उनका या घर के छोटो का ?

आज देश में पाश्चात्य संकृति ने हर घर में प्रवेश कर लिया है | ऐज गेप के नाम पर युवा वर्ग अपने बुजुर्गो के संस्कारो को लगभग नकार दिया है| आज का युवा उच्च शिक्षा पाकर मोटी रकम तो पा लेता है,पर मानवीय सम्वेदना और बुजुर्गो के प्रति आदर का भाव उनमे नहीं के बराबर रहता है | ऐसे में बुजुर्गो को अपने प्रति अपमान का खतरा हर पल रहता है| घर के बड़े अपने अनुभवो को जो जीवन में उनसे रूबरू हुए है उनको अपने बच्चो के संग बांटना चाहते है पर उनके पास सुनने को वक्त ही नही ! आज के युवा का जीवन केवल पैसे कमाने की मशीन बन कर रह गया है | ऐसे में जीवन के अंतिम प्रहर में अपने ही घर में घर के बुजुर्ग अपने कमरे में सिमट कर रह जाने को मजबूर हो जाते है| बाकी का समस्त जीवन एकाकी बिताना ही नियति मान लेते है|

 

नाम – शान्ति पुरोहित

पता – नोखा बीकानेर राजस्थान

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “आलेख

  • विजय कुमार सिंघल

    सही बात. आज कि पीढ़ी यह भूल जाती है कि जब वे वृद्ध होंगे तो उनको भी यह भुगतना पड़ेगा अगर वे अपनी संतानों के समक्ष अच्छा उदाहरण नहीं रखेंगे.,

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