कविता

हरसिंगार

हरसिंगार
जीने की आस
बढ़ता उल्लास
महकता जाये

भीनी भीनी मोहक सुगंध
रोम -रोम में समाये
मदहोश हुआ मतवाला तन
बिन पिए नशा चढ़ता जाये
शैफाली के आगोश में लिपटा शमा
मधुशाला बनता जाये
पारिजात महकता जाये

संग हो जब सजन -सजनी
मन हरसिंगार
विश्वास -प्रेम के खिले फूल
जीवन में लाये बहार
प्यार का बढ़ता उन्माद
पल-पल शिउली सा
महकता जाये …!

नयनो में समाया शीतल रूप
जीवन के पथ पर कड़कती धूप
न हारो मन के साथ
महकने की हो प्यास
कर्म ही है सुवास
मुस्काता उल्लास
जीवन हरसिंगार
महकता जाये …!

—शशि पुरवार

5 thoughts on “हरसिंगार

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut sundar
    harsingaar ke jaise mehkti kavita 🙂

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर कविता, शशि जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता जी .

  • उपासना सियाग

    बहुत सुन्दर महकती हुई कविता ….

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