कविता

कविता : आठों पहर तुम

तुम करो या ना करो
क्या फर्क पड़ता है प्रिय
मै तो तुम्हें हरदम याद करती हूं

जब चांद फलक पर
नजर आता है
तुम्हारी याद दिलाता है
छु लेने को
मन बच्चे सा मचल जाता है
बित्ता बित्ता
बढ जाते हैं ख्वाब
फिर नींद कहाँ चैन कहाँ

मै जागूं या सो जाऊँ
क्या फर्क पड़ता है प्रिय
इन नैनों में आठों पहर तुम ही तो रह्ते हो!!

डॉ भावना सिन्हा 

डॉ. भावना सिन्हा

जन्म तिथि----19 जुलाई शिक्षा---पी एच डी अर्थशास्त्र

3 thoughts on “कविता : आठों पहर तुम

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. आप आठों पहर किसी को याद करती हैं, यह सोचना भी आनंददायक है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी भावना जी , मुझे मेरी जवानी के वोह दिन याद हो आए , इस के लिए धन्यवाद ही कहूँगा .

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