कविता

आलसी कोहरा

कुछ इस तरह बैठा है,
आलसी कोहरा,
पैर पसारे, शाख पर!
हैराँ परेशाँ सा है सूरज,
नहीं समझ पा रहा,
क्या करे वो!
होंगे मेरे.
इंतजार में.

kohra
बूढ़े,बच्चे,जवान सारे!
ठिठुरते होंगे,
कड़कड़ाते जाड़े से!
आजाद होना है मुझे,
बादलों की कैद से!
तड़प रहीं हैं मेरी,
रशमियाँ सारी!
आजाद होकर,
पंख फ़ैलाने को !
अपनी नर्म तपिश से,
लोगों को जाड़े से,
राहत दिलाने को !
पक्षी भी हैं इंतजार में,
सारे !
हल्का सा छुटपुटा हो !
और सूरज बादलों से झाँके !
सूरज की आस में बैठी,
एक अम्माँ बेचारी !
सूरज निकले तो ,
चैन की साँस आये !
कुछ लकड़ियाँ बीन लाये !
अलाव  सुलगाये !

चाय बनाये !
जाड़े से ठिठुरती ,
बूढ़ी हड़डियों को,
राहत मिल जाये !
सूरज कुछ सोचता है,
बादलों को धकाता है,
खुद अपनी राह बनाता है!
खिल उठते हैं चेहरे सारे !
आलसी कोहरा ,
दुम दबाता है,
भाग जाता है!

…..राधा श्रोत्रिय”आशा

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “आलसी कोहरा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया , बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, राधा जी.

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