कमलजी की “पी के ” पर सवाल !
कमल जी कुछ सवाल …
टीम पि के में आमिर खान के अलावा और कौन कौन मुसलमान है ?
और जो मुसलमान नहीं है क्या वो सेकुलर हैं ??
क्या सत्तारूढ़ बी जे पी हिन्दू संघठन नहीं है ? अगर है तो उसने आधिकारिक तौर पर कहाँ विरोध किया ??
क्या शराब की तरह लोग पि के को भी रोज रोज ,जब मौका मिले तब बार बार अनेको बार देख रहे हैं ??
क्या फ़िल्म देखने जाने वाले और शराब के ठेके और वेश्याओं के पास जाने वाले आपकी नज़रों में एक ही स्तर के हैं ?? तो फिर आप भी इसे देखकर क्या साबित कर रहे हैं ? और …. कितनी बार देखि आपने ??
जिन कुरीति या आस्था जो भी है जिसके खिलाफ दिखाए जाने पर आप स्यापा कर रहे हो उन कुरीतियों के खिलाफ कानून हाथ में लेकर बाबरी ढहाने में सक्षम हिन्दू संघठनो ने आज तक क्या किया ?? इतने सक्षम हिन्दू संघठनो के होते जो की अब तो सत्ता में भी है ये कुरीतियां आजतक विद्यमान क्यों है ??
पुणे में इन्ही कुरीतियों के खिलाफ आजीवन आवाज उठाकर अंधश्रद्धा विरोधी कानून लानेवाले के हत्त्यारे कौन है ? हिन्दू या मुस्लिम ?? उनका जीते जी कितने हिन्दू संघठनो ने सपोर्ट किया ?? आप तो इन कुरीतियों को गलत मानते हो न ? भाई शुरू में तो आप खुद इसके लिए खुद आमिर खान की तारीफ़ कर रहे हो !!! क्या आप कभी किसी अंधश्रद्धा विरोधी संघठन के सदस्य भी रहे ??
जिन श्रद्धालुओं की यात्राओं से कई महीनो की रोटियों का जुगाड़ करने वाले और बदरीनाथ में लाशों के अंग काट काट कर उनसे सोने के आभूषण खुले आम कैमेरे के सामने निकालने वाले क्या अलग है ?
श्रद्धालुओं पर विपदा के कई उदाहरण हैं ,क्या किसी हिन्दू संघठन ने कभी कहा की उनके बचाव और राहत की पूरी जिम्मेदारी हमारी है सरकार या फ़ौज वहां न आये !
हिन्दू तो आसाराम और नित्यानंद में भी आस्था रखता था ! तो ? क्या आस्था इस बात की गारंटी साबित हो सकी की वह सही ही है ? अरे आस्था के लिए तो खुद शंकराचार्य ही कंफ्यूज हैं ! बताइये सांई बाबा पर क्या फैसला हुवा ?? नहीं हुवा तो वो कौन सा ठेकेदार लेगा जो सर्वमान्य होगा ?? जब जब ऐसे सवाल पैदा होते हैं तब आप कौन सा अंतर स्पष्ट कर सके ? तब भी तो आप यही कहते हो जो जहाँ चाहे मराये ! फिर अब पि के पर भी लोग वही करें तो आपके पिछवाडे में हलचल क्यों ?
मूर्ति में ट्रांसमीटर न होने की बात तो आप मान गए … बहोत मेहरबानी !! लेकिन शायद आपने वह बात नहीं सुनी के एक धागा बंधवाने से ,मंदिर जाने से किसी की उम्मीद बंधती है तो इसमे क्या बुरा है ? बस्स ! क्या केवल इतनी ही उपयोगिता है धर्म की ?? जो फ़िल्म के हिन्दू धर्म के ठेकेदार खुलेआम स्वीकार रहे हैं क्या ये आप भी स्वीकारने पर मजबूर नहीं ??
अब आप कहेंगे की ये हमारे धर्म की बात ह किसी और को इसमे कुछ बोलने का अधिकार नहीं है !
फिर अल्लाह बेहरा है ये मनवाने की जिद क्यों ? वो भी उनके धर्म के अधिकार क्षेत्र की बात है ! आप क्यों बोल रहे हो ? अल्लाह बेहरा है या नहीं ये तो पेशावर में ,ईराक में,स्वयंसिद्ध है ठीक उसी तरह जैसे बदरीनाथ में साबित हुवा था !
बिलकुल अब आप मुझपर अति क्रोधित हो रहे होंगे और आपके अंदर का असली हिन्दू अब जागने लगा होगा ! जरूर जागना भी चाहिए ! लेकिन जरा याद करके बताएँगे की ये आपके अंदर का हिन्दू इससे पहले कब ऐसे ही जागा था ? क्या ये तब जागा था जब जिन कुरीतियों के दर्शन फ़िल्म में नदारद थे वो आपके सामने आई ? नहीं ये केवल तब ही जागता है जब कोई गैर मजहबी इसपर ऊँगली उठाता है ! या इसके बावजूद इनके अपने स्वधर्मी इसे देखने जाता है और विरोध नहीं करता !
विरोध ? विरोध तो आप भी नहीं कर रहे ! उन बातों का जो कही गई ! , बल्कि जिसने कही उसका कर रहे हैं !!
आश्चर्य तो तब होता है जब ये जिन बातों पर ऊँगली उठाई गई हो उससे तो इनकार नहीं कर पाते लेकिन अन्य मजहबियों की इन बातों से भी ज्यादा बुरी बातों पर ऊँगली उठाने की शर्त पर फिर एक बार समाज को उन्ही कुरीतियों के हवाले होने पर मजबूर रखते है !
जब उनका गलत सही तो हमारा सही गलत कैसे ? अंत में हर धर्म का अस्तित्व केवल यही प्रश्न तक सिमित हो जाता है ! इसका क्या उपाय है ? है भी या नहीं ?? है तो शुरुआत कौन करेगा ? इन प्रश्नो के कोई जवाब पूछ पाये तब तक दूसरी पि के आ जाती है पिछले की कमाई का रिकॉर्ड तोड़ने ! और तब तक . सबके अंदर का हिन्दू सो जाता है !
जी मानता हूँ की अगर ऐसा है भी तो इसका ये भी कोई हल नहीं की किसी गैर मजहबी को आपके ऊपर ऊँगली उठाने का लाइसेंस मिल जाए ! लेकिन ये भी तो हल नहीं की बदले में हम भी वही करें ! ? वही चाहें ?
खुद पर आई तो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच गलत ? और जब इस देश को कई टुकड़ों में बांटकर देश की जनता को अंग्रेजों की गुलामी के लिए मजबूर करने वाली राजशाही से मुक्त कराकर वास्तव में एक गणतंत्र देश बनाने वाले नेताओं के व्यक्तिगत जीवन पर मजे लेते वक्त सही ??
आचार्य जी, आपने अपनी ‘परम्परा’ के अनुसार ही सवाल उठाये हैं, अधिकतर असंगत, बहुत से निरर्थक और बहुत कम सार्थक. इन सबके जबाब देने से और बहुत से सवाल उठ खड़े होंगे. इसलिए मुझे नहीं लगता कि कमल जी आपको उत्तर देने का कष्ट करेंगे.
लेकिन यदि आप निरर्थक और असंगत सवाल उठाने की जगह कमल जी के लेख की मुख्य बातों पर चर्चा करते तो बेहतर होता.
धन्यवाद ! विजयजी , मैं जानता हूँ मेरी प्रतिक्रिया का आपके जेहन में और जय विजय के मंथन में क्या स्थान है ! फिर भी ये प्रकाशित है इसके लिए धन्यवाद !
अब जैसे की आपकी टिपण्णी इस लेख की जगह परम्परा के पूर्वाग्रह तक ही सिमित रह गई है मुझे दुःख तो है लेकिन आश्चर्य नहीं ! ऐसा बर्ताव मैंने आपके किसी लेख तो क्या किसी वाक्य तक के साथ नहीं किया है कभी , चलो फिर भी कमलजी के एक तरफ़ा लेख के दुसरे पहलू को भी यहाँ विराजमान रख कर आपने मुझे और पत्रकारिता धर्म को ऋणी बना दिया है उसके लिए पुन: धन्यवाद ! एवं नववर्ष की शुभकामनाएं !!