शिशुगीत

शिशुगीत – 2

१. गेंद

रंग-बिरंगी आती है

मेरा मन बहलाती है

बल्ले, हॉकी, रैकेट से

ढेरों खेल खिलाती है

 

२. पंखा

फर-फर, फर-फर चलता है

गरमी दूर भगाता है

निंदियारानी को लाकर

सारी रात सुलाता है

 

३. फूल

फूल खड़े रहते मुस्काते

दे रस मीठा मधु बनवाते

फ्रेंड इन्हीं की तितलीरानी

रोज सुनाती नयी कहानी

खुशबू-खुशबू हरदिन खेलें

इक-दूजे को पकड़ें-ठेलें

आँधी आती तो डर जाते

पत्तों में जाकर छिप जाते

 

४. लैपटॉप

गेम खिलाता, गीत सुनाता

टीचर जैसा हमें पढ़ाता

इसके अंदर जादू सारा

पलभर में ही रंग जमाता

 

५. मोबाइल

मम्मी बात करे नानी से

पापा ऑफिस लेकर जाते

मोबाइल छोटा कम्प्यूटर

भैया इंटरनेट चलाते

मैं भी मन बहलाता हूँ

फोटो रोज खिंचाता हूँ

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “शिशुगीत – 2

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे शिशु गीत !

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