अब अपमान की रेस में गांधीजी भी !
दुनिया में गांधीजी की वजह से इस देश की बनी पहचान को बरकरार रखने के लिए बी जे पी, मतलब मोदीजी भी जब से सत्ता में आयें हैं गांधीजी के नाम की देश विदेश में माला जप रहे है ये मोदीजी के आर एस एस की पार्श्वभूमी देखते हुवे आश्चर्यजनक होते हुवे भी सर्व विदित है ! और हाल ही में हुवे गांधीजी के देश वापसी की शाताब्धि के उपलक्ष्य में गुजरात में प्रवासी भारतीय दिवस का भव्य आयोजन इस बात का ताजा सबुत है ! जहाँ लगभग ४००० से अधिक प्रवासी भारतीयों के सामने यही सन्देश था की देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले राष्ट्रिय नेताओं की स्मृतियाँ हम भारतीयों के लिए आज भी मायने रखती है ! अब ये बात और है की सरदार पटेल , भगतसिंग आदि अन्य गांधीजी के समतुल्य क्या कुछ लोगों के हिसाब से गांधीजी से भी ज्यादा सन्मान के हकदार स्वातंत्र्य वीरों को गांधीजी के मुकाबले कम आँका जाने का ,कम सन्मान मिलने का दुखड़ा हमेशा रोने वालों ने सत्ता में आने के बाद अब तक भी कभी किसी आयोजन , योजना या मुद्दे को लेकर इन नेताओं को सन्मान देने का कोई उदाहरण पेश नहीं किया है ! लेकिन कांग्रेस की ही तरह गांधीजी का डंका कांग्रेस से भी ज्यादा जोर से बजाया जा रहा है |
इसके पीछे गांधीजी के लिए सन्मान की अपेक्षा कांग्रेस से गाँधी छिनने की राजनीति ज्यादा है इसपर गांधीजी के जन्मजात विरोधियों को अचानक गांधीजी का बुखार चढ़ा देखकर कोई भी यकीं कर सकता है ! लेकिन ये तो हुई इस देश के अंतर्गत राजनीति की बात | लेकिन जिस तरह की भा ज पा की सांप्रदायिक छवि से मोदीजी के सत्ता में आने के बाद भी देश की विदेश निति में कोई साम्प्रदायिकता का असर दुनिया को नजर नहीं आ रहा ,जिसका की दुनिया डर पाले बैठी थी | उसी तरह बी जे पी की आका आर एस एस के गांधीजी वाले स्टैंड का प्रभाव भी बी जे पी सरकार की नीतियों में दुनिया को नजर नहीं आ रहा | और उलटे कांग्रेस की अपेक्षा मोदी सरकार में खुद देश के प्रधानमन्त्री के मुखाकमलों से महात्मा गांधीजी का नाम और किसी गाँधी से ज्यादा ही सुनने को मिल रहा है |
तात्पर्य यही की इस देश में सरकार चाहे किसी की हो गांधीजी के बिना किसी का काम नहीं चलता ये जगजाहिर है ! और इसे हम चाहे जैसे लें लेकिन दुनिया में हमारे देश में राष्ट्रिय नेताओं के योगदान के सन्मान की परम्परा की छवि को ही उजागर करता है | जिसका की एक उदहारण गुजरात के प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन में भी दुनिया ने देखा | लेकिन यह क्या ? खबर है की इस आयोजन के दौरान गांधीजी के अपमान होने की भी शिकायत हुई है ? किसी सामाजिक कार्यकर्ता रोशन शाह ने गांधीनगर पुलिस और गुजरात पुलिस चीफ को इस सिलसिले में चिट्ठी में लिखी है। उन्होंने पुलिस से गुजरात सरकार, मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और म्युजियम के ऑर्गनाइजर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।आरोप है कि मॉडर्न आर्ट के नाम पर अहमदाबाद में प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान एक म्युजियम में महात्मा गांधी की नग्न मूर्ति का प्रदर्शन हुआ।
ऐसे तो गांधीजी की हत्या करके भी पेट न भरने पर आजीवन उनका अपमान करने वाले हत्या समर्थकों की यहाँ कोई कमी नहीं है ! और पी के तो भूले नहीं होंगे आप ? आये दिन अपने अपने धर्म के अपमान के डंके की गूंज को देश दुनिया में गुंजाने वालों की भी यहाँ कोई कमी नहीं है ! शिवाजी हो या बाबासाहब आम्बेडकर , देवी देवता हो या पुराने ऐतिहासिक ढांचे , इनकी मूर्ति विटंबन और कार्टूनों आदि से एक दुसरे की जान के दुश्मन बन कर दंगो फसादों को अंजाम दिए जाने के भी उदहारण आये दिन देखने को मिल जाते हैं ! और … पी के को तो भूले नहीं होंगे आप !! ?
लेकिन गांधीजी की मूर्तियों के अपमान से ऐसा कभी कुछ हुवा हो ये कभी सुनने में नहीं आया था | इसीलिए रोशन शाह की एक छोटी से शिकायत जो की मिडिया के लिए भी किसी काम की न रही आश्चर्य पैदा करती है | क्यूँ की इस देश में किसी के लिए सन्मान या किसी के अपमान को जाहिर करने के तरीके गांधीजी पर खरे नहीं उतरते इसीलिए दुनिया के सामने देश के सन्मान के प्रतिक का वास्तव में देश के अन्दर कोई समर्थक नहीं है यही प्रतीत होता आया है | इसीलिए गांधीजी के अपमान को लेकर एक छोटी से शिकायत आश्चर्य पैदा करती है !
अब इस शिकायत का जो भी अंजाम हो लेकिन मैं आप को याद दिला दूँ की इससे पहले फिल्म पी के में भी गांधीजी की तस्वीर का एक कड़वे सत्य के साथ लेकिन मजाक तो उड़ाया ही गया है | लेकिन उस वक्त किसी धर्म और देवताओं के अपमान के लिए आसमान सर पर उठा लेने वालों में से किसी का इस बात पर ध्यान भी नहीं गया की उनके मान अपमान के मायनों के तहत यह फिल्म गांधीजी के अपमान के लिए भी उतनी ही दोषी है | लेकिन इस पर किसी को कोई आपत्ति न होना तो यही दर्शाता है की इस देश की जनता को आज भी अपने भाग्यविधाता रहे नेताओं से ज्यादा अपने अपने देवताओं और धर्मों की ही पड़ी है ! फिर कैसे कोई आधुनिक भारत का दम भर सकता है ?
गाँधी की ऐसी मूर्तियाँ कलाकार ने अपनी कला का नमूना दिखने के लिए बनायीं होंगी, उसका इरादा गाँधी के अपमान का नहीं रहा होगा. इसलिए इस मामले को तूल देना उचित नहीं.
वैसे गाँधी का सबसे ज्यादा अपमान कांग्रेसियों ने और स्वयं गांधीवादियों ने किया है. गाँधी की जिस अहिंसा का जाप ये दिन रात करते हैं उसका अंतिम संस्कार तो कांग्रेसियों ने गाँधी कि हत्या के बाद ही कर दिया था जब उन्होंने नाथूराम के बहाने हजारों मराठी ब्राह्मणों के घर पर जमकर हिंसा का नंगा नाच किया था.
वैसे आपका लेख अच्छा है.
सोचने वाला लेख.
धन्यवाद ! भामरा जी !!