ग़ज़ल
कौन मेरे टूटते ख्वाबों की भरपाई करे ।
दोस्तों के बीच दुश्मन की शनासाई करे ।
कल भी मुझपे तंज करती थीं शहर की रौनकें ।
आज भी ये काम मेरे दिल की तनहाई करे ।
दर्द आँसू गम चुभन देतीं हैं तेरी ही तरह ।
मुझसे मुजरिम की तरह बरताव पुरवाई करे।
घर में ही होने लगी तलवारबाजी बेसबब ।
अब मुसलसल दुश्मनों का काम खुद भाई करे ।
एक कतरे को समंदर भी बना सकता है जो ।
जिद पे आ जाए तो वो परबत को भी राई करे ।
वाह वाह !