अनबूझ गरिमा- मौन
कपड़ों की उथल-पुथल में
खोजना है कुछ नया पुराना
जीवन की गरिमा अनबूझ है
बनाना है कुछ नयी सोच से
तितर- बितर समेंट लो यारों
एक सुर धागों से तार बीन कर
दूर देश की परी से मिलने
स्वप्न लोक के पार है जाना
आओ संगी साथी मेरे
कुछ गढ़ना कुछ गढ़ते जाना — मौन
बहुत खूब.