लघुकथा

सत्ता के तौर-तरीके

“ये क्या किया सरकार, पिंजरों के दरवाजे खुले रखने का आदेश दे दिया! सब के सब उड़ जाएंगे। क्या बचेगा हमारे पास? माँस की महक को तरसना पड़ेगा”

“मूर्ख हो तुम वजीर जो अभीतक सत्ता के तौर-तरीके नहीं समझ सके। हमारे विरोध में कुछ स्वर पनपने लगे थे। उनको दबाने के लिए अनगिन तालियों की गड़गड़ाहट चाहिए थी सो ऐसा हुक्म देना पड़ा। आदेश-पत्र को ठीक से पढ़ो। ये शर्त अनिवार्य रूप से रखी गई है कि उनके ही पिंजरों के दरवाजे खुले रखे जाएंगे जो अपने पर कतरवाने की लिखित स्वीकृति दें”

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “सत्ता के तौर-तरीके

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छा विअंग .

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