धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेद और क़ुरान फैसला करते है कितने दूर कितने पास?

दिल्ली पुस्तक मेले में कुछ मुस्लिम भाइयों द्वारा एक स्टाल लगाकर यह प्रचारित किया जा रहा है की वेद और कुरान दोनों दूर नहीं अपितु पास है और दोनों ईश्वर या अल्लाह द्वारा प्रदत धार्मिक पुस्तक है। दरअसल यह मानसिक कुश्ती विश्वस्तर पर इस्लामिक आतंकवाद के कारण इस्लाम के प्रति लोगों की नकारात्मक धारणा को बदलने का प्रयास मात्र है जिससे कुछ युवा हिन्दुओं को भ्रमित किया जा सके।
ved quran
सामान्य हिन्दू समाज नियमित स्वाध्याय की कमी के चलते धर्म के वास्तविक स्वरुप से प्राय: अनभिज्ञ ही है और ऐसे में यह प्रयास कुछ न कुछ फल दे सकता है। मगर सत्य के ग्रहण एवं असत्य के त्याग के लिए सर्वदा उद्यत रहने वाले स्वामी दयानंद के शिष्य पुरुषार्थ करने का संकल्प लिए हुए है। उसी पुरुषार्थ को सिद्ध करने के लिए इस लेख के माध्यम से कुछ शंकाओं के माध्यम से वेद और क़ुरान कितने दूर और कितने पास है यह जानने का प्रयास करेंगे?
1. वेद ईश्वरीय ज्ञान है जबकि क़ुरान मनुष्यकृत ज्ञान है। वेद सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य जाति को प्राप्त हुए जबकि क़ुरान करीब 1400 वर्ष पहले मिला। इस्लामिक मान्यता के अनुसार क़ुरान से पहले तौरेत, जबूर और फिर इंजील का प्रकाश हुआ और अंत में क़ुरान का प्रकाश हुआ। क़ुरान का प्रकाश करते समय अल्लाह द्वारा पहले दिए ज्ञान को निरस्त कर दिया गया। एक प्रश्न पर हमारे मुस्लिम मित्र सदा मौन धारण कर लेते है जब उनसे पूछा जाता है की ईश्वर को अपने दिए ज्ञान को तौरेत, जबूर, इंजील के माध्यम से बार बार निरस्त कर पुन: स्थापित करने की क्यों आवश्यकता पड़ती हैं और क़ुरान को अंतिम पुस्तक किस आधार पर माना गया है? जब निरस्त करना ही था तो फिर पहले ही इस कमी को दूर क्यों नहीं कर दिया जिसे बाद में क़ुरान के माध्यम से पूरा करना पड़ा। वेद का सृष्टि के आदि में आना और अंत तक रहना, सदा एक समान रहना और उसमें कोई परिवर्तन न होना सत्य के निकट अधिक
प्रतीत होता है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
2. वेद संसार की अज्ञानता नष्ट करने एवं मनुष्यों में द्वेष भाव समाप्त कर एकता का सन्देश देते है। वेद मानव से लेकर समस्त पशु पक्षियों को भी मित्र भाव से देखने का सन्देश देता है जबकि क़ुरान में अनेक आयतें विवादस्पद है जो गैर मुस्लिमों के क़त्ल, उनकी संपत्ति के हरण आदि का सन्देश देती है। जिनके प्रभाव से सम्पूर्ण पृथ्वी का शायद ही कोई कोना होगा जहाँ पर आतंकवाद के नाम व्यापक हिंसा न हो रही हो। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
3. वेद ईश्वर को निराकार एवं सर्वव्यापक मानता है जबकि क़ुरान ईश्वर को सातवें आसमान पर वास करने वाला साकार एवं एकदेशीय मानता है। निराकार सत्ता इस सर्वदेशीय एवं सर्वव्यापक हो सकती है साकार सत्ता एकदेशीय एवं सीमित रहेगी। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
4. वेद में विशुद्ध एकेश्वरवाद अर्थात ईश्वर एक है का सन्देश है जबकि क़ुरान में कहने को अल्लाह एक है मगर अल्लाह और आदम के बीच में फरिश्ते, पैगम्बर, अंतिम रसूल और न जाने क्या क्या है। वेद आत्मा और मनुष्य के मध्य कोई मध्यस्त नहीं मानता क्यूंकि वेद के अनुसार ईश्वर समस्त आत्माओं में अंतर्यामी है। जबकि क़ुरान पैगम्बर, रसूल आदि को मनुष्य और ईश्वर के मध्य मध्यस्त मानता है एवं मध्यस्त की सिफारिश से ईश्वर का प्रभावित होना भी मानता है। यह क़ुरान के ईश्वर की अन्य पर निर्भरता सिद्ध करता है जबकि वेदों का ईश्वर किसी पर भी आश्रित नहीं है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
5. वेद का ईश्वर कर्मों का फल तत्काल, कुछ समय पश्चात अथवा जन्मों जन्मों तक देता है जबकि क़ुरान का ईश्वर क़यामत तक इन्तजार करवाता रहता है। यह अत्याचार नहीं तो और क्या है की चिरकाल तक आत्माओं को केवल बंदीगृह में कैद रहकर अपनी पेशी होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। किसी के धनी घर में पैदा होने अथवा किसी के निर्धन घर में पैदा होने , किसी के स्वस्थ अथवा किसी के रोगी पैदा होने का अंतर पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर समझा जा सकता है मगर इस्लाम की मान्यता के अनुसार अल्लाह की मर्जी,अल्लाह की इच्छा आदि के आधार पर उसे समझा नहीं जा सकता क्यूंकि वेद का ईश्वर न्यायकारी एवं दयालु है और किसी से पक्षपात नहीं करता। अगर जो यह माने की अल्लाह परीक्षा ले रहा है तो भी अल्लाह अज्ञानी माना जायेगा क्यूंकि उसे परीक्षा का फल नहीं मालूम इसलिए वह परीक्षा ले रहा है। अल्लाह या ईश्वर का अज्ञानी होना भी संभव नहीं है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
6. वेद के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सभी दुखों से छूटकर मोक्ष के आनंद को ग्रहण करना हैं जबकि क़ुरान के ईश्वर के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य हूरों का भोग, मीठे पानी के चश्में, शराब का दरिया है। अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
7. वेद के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति अभाव से नहीं हुई अपितु प्रकृति अपनी सम अवस्था में विद्यमान थी जिससे ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया जबकि क़ुरान के ईश्वर ने ‘कुन’ कहा और उससे अभाव से सृष्टि की उत्पत्ति हो गई। अभाव से भाव की उत्पत्ति होनी अवैज्ञानिक एवं असंभव है। अवैज्ञानिक पक्ष होने के कारण से वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
8. वेद में ईश्वर, आत्मा और प्रकृति तीन अनादि तत्व है जबकि क़ुरान में केवल ईश्वर या अल्लाह को अनादि बताया गया है। अगर केवल अल्लाह अनादि है तो अल्लाह द्वारा सृष्टि की रचना का उद्देश्य क्या रह गया। जब सब कुछ ईश्वर है तो फिर आत्मा में अज्ञानता का प्रवेश कहाँ से हुआ? इस पर इस्लामिक विद्वान स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाते। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
9. वेद का ईश्वर वेद को तर्क की कसौटी पर परखने का समुचित अवसर देता है जबकि क़ुरान का ईश्वर मजहब में अक्ल का दखल नहीं देता। युक्ति या तर्क की कसौटी पर वह ज्ञान सदा खरा उतरेगा जो सत्य पर आधारित होगा जबकि इस्लामिक शरिया के अनुसार क़ुरान या रसूल पर शंका करने वाला दंड का पात्र माना गया है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
10. वेद में एक भी सिद्धांत एक दूसरे से विरोधाभास नहीं रखता जबकि क़ुरान में अनेक एक दूसरे का विरोध दर्शाने वाली बातें भरी पड़ी है। इसलिए वेद और क़ुरान में पर्याप्त दूरी है।
वेद और क़ुरान में पर्याप्त अंतर है अधिक जानकारी के लिए स्वामी दयानंद रचित सत्यार्थ प्रकाश एवं पंडित चमूपति रचित चौदहवीं का चाँद पढ़िए। (दोनों पुस्तकें दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में आर्यसमाज स्टाल संख्या 219-225 , हाल नंबर 12 से 14 फरवरी से 22 फरवरी एवं उसके पश्चात दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा 15, हनुमान रोड, आर्यसमाज से मिलेगी।)