बाल कविता

रोज सवेरे आता सूरज

रोज सवेरे आता सूरज

धूप सुनहली लाता सूरज

छुट्टी मिलती कभी न इसको

दिन भर दौड़ लगाता सूरज ।

 

जाड़े के दिन भाता सूरज

गरमी में झुलसाता सूरज

पड़ती है जब रिमझिम बारिश

बादल में छुप जाता सूरज ।

 

ठीक समय से आता सूरज

अंबर पर मुस्काता सूरज

देकर अपनी किरणें सबको

कभी नहीं इतराता सूरज ।

 

पौधों को हर्षाता सूरज

फूलों को महकाता सूरज

सबमें जीवन भरने नित दिन

नीचे भू पर आता सूरज |

स्वर्णा साहा

शिक्षा- एम ए (हिंदी), एम ए (लोक प्रशासन) | प्रकाशन - नंदन, बालवाटिका, ट्रू मीडिया, साहित्य समीर, अंगिकालोक, प्रगतिवार्ता, मानस मंथन, सत्यचक्र आदि हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखों और कविताओं का नियमित प्रकाशन | पुरस्कार - 'बालवाटिका' में प्रकाशित वर्ष (२०१४) की श्रेष्ठ कविता के लिए स्व० भागवतीदेवी पाठक स्मृति बालवाटिका पुरस्कार, विभिन्न सांस्कृतिक एवं महिला संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सम्मानित/पुरस्कृत | ईमेल - swarnadevi711@gmail.com

3 thoughts on “रोज सवेरे आता सूरज

  • बहुत सुंदर एवं मनोरंजक कविता। बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा के जरिये सामाजिक कल्याण
    की प्रेरणा देने वाली है। बहुत-बहुत बधाई।

  • स्वर्णा साहा

    आभार आपका गुरमेल जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर कविता , सूर्य ही जीवन है , सूर्य ही शक्ति और सूर्य से हम हैं.

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