मैं क्यों न हूँ उदास
जब से मिला हु तुमसेे
जगी है दिल में एक आस
जाने कब होगा फिर मिलना
मैं क्यों न हूँ उदास
मैं क्यों न हूँ उदास
चाहा था तुमको
दिल की गहराईयों से
और पाया भी तो
आकाश की उंचाईयों से
डर लगता है
कहीं खो न दूँ
वक़्त के प्रहार से
इसलिए
नही खोना चाहता
अपने होश और हवास
अब तुम्ही बताओ मेरी जान
मैं क्यों न होऊं उदास
मैं जानता हूँ तुम्हारी मुस्कराहट
सिर्फ एक दिखावा है
मेरी चाहतों की खातिर
मात्र एक छलावा है
छिपा लेती हो सभी दर्द
अपनी झूठी मुस्कान की आड़ में
पर मैंने भी उस छलावे पे
अपना सारा प्यार हारा है
अब तुम्ही बताओ
मैं क्यों न हूँ उदास
मैं क्यों न हूँ उदास
भावपूर्ण प्रस्तुति !
अच्छी कविता !