राजनीति

मेक इन इंडिया के लिए कौशल विकास जरुरी

पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने पहले भाषण में मेक इन इंडिया का नारा दिया था । वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी अपने बजट भाषण में मेक इन इंडिया की बात कही थी। उनके बजट भाषण में इंफ्रास्ट्रक्चर और कारोबार आसान करने से लेकर स्किल डेवलपमेंट तक मेक इन इंडिया की झलक देखने को मिली। मेक इन इंडिया का लक्ष्य नए उद्योगों की शुरुआत करना है।
    भारत में औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मज़दूरों में कुशलता और कौशल का होना आवश्यक है। मैन्युफैक्चरिंग नई सरकार के प्रमुख पॉलिसी उद्देश्यों में शामिल है। मैन्युफैक्चरिंग लॉन्ग-टर्म ग्रोथ का इंजन साबित होगी। यदि देश में उत्पादन की इकाइयां नहीं लगेगीं तो देश कारोबारियों और व्यापारियों का बन कर रह जाएगा। विनिर्माताओं  का नहीं बन पाएगा। आज देश को विनिर्माताओं की जरूरत है। निर्माण ही नहीं होगा तो कारोबारी क्या बेचेंगे ?
    भारत दुनिया के सबसे जवान आबादी वाले देशों में शुमार है और देश इस वजह से एक बड़ी फायदेमंद स्थिति में है। देश की युवा आबादी में मौजूद संभावनाओं का पूरा फायदा उठाने की जरूरत है। जवानी को स्कूलों में खपाने की जगह कार्यशालाओं और फेक्ट्रिओ में लगाना पड़ेगा। देखने में यह आया है की जवानी कॉलेज में खर्च हो जाती है और कॉलेज से निकलने के बाद विद्यार्थी किसी काम का नहीं बचता है। एक जमाना था जब पढाई लिखाई, डिग्री, क्वालीफिकेशन ही जॉब के लिए पर्याप्त हुआ करती थीं। लेकिन आज स्वयं को सिद्ध करना पड़ता है। पुराने ज़माने की तरह बच्चो को बचपन में ही किसी न किसी रोजगार में लगा देना चाहिए। इससे रोजगार की गारंटी भी मिलेगी और गरीबी से बचाव भी रहेगा। आज चाइल्ड लेबर के नियमों को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है।
    आज स्किल डेवलपमेंट की महती आवश्यकता है। बेहतर और कुशल कामगार ना सिर्फ देश में बेरोज़गारी की समस्या को ख़त्म कर सकते हैं बल्कि देश और कारोबार की तरक्की में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। अक्टूबर 2009 में नेशनल स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन की शुरुआत की गई। कौशल निखार के लिए नैशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने करीब 2500 करोड़ रूपये का कोष बनाया है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर कौशल निखार के लिए नैशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन  निजी संस्थानों को धन एवं मार्गदर्शन देने का काम करती है। कौशल विकास मिशन द्वारा प्रशिक्षण केंद्र के इंस्ट्रक्टर को 30 रुपये प्रति घंटा प्रति प्रशिक्षणार्थी मानदेय दिया जाता है। प्रशिक्षण कोर्स पूरी तरह से निशुल्क है। किसी तरह का कोई चार्ज नहीं लिया जा सकता। कम से कम 60 फीसदी प्रशिक्षार्थियों को नौकरी दिलाना संस्था की जिम्मेदारी है। ऐसा न होने पर 20 फीसदी मानदेय में की जाती कटौती है।
    इक्रा मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विस लिमिटेड और एओन हेविट जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टिंग फर्म के आंकड़ों के मुताबिक साल 2022 तक भारत में करीब 35 करोड़ कार्य-कुशल कामगारों की ज़रुरत होगी। कामगारों की कुशलता को निखारने का काम भी लक्ष्य से काफ़ी पीछे चल रहा है। नवंबर 2012-13 के मध्य तक नैशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन महज़ 14 लाख कामगारों को ही ट्रेनिंग दे पाई थी जो कि उसके अपने लक्ष्य 85 लाख कार्य-कुशल कामगारों से काफी पीछे है। देश में हर साल 1.80 करोड़ कामगार बढ़ जाते हैं। लेकिन हर साल सिर्फ 31 लाख को ही स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देने की व्यवस्था है। इलेक्ट्रिक और हाउस वायरिंग, सिल्क, स्क्रीन और प्रिंटिंग, वेल्डिंग एवं फैब्रिकेशन, एलईडी, एलसीडी और टीवी रिपेयरिंग, यूपीएस और इनवर्टर रिपेयरिंग, ब्यूटीशियन एवं कटिंग, आर्टिफिशियल ज्वैलरी और मोबाइल रिपेयर, कंप्यूटर आपरेटर, इलेक्ट्रिक एवं मोटर बाइंडिंग सहित करीब 250 ट्रेडों में प्रशिक्षण दिया जाता है। युवाओं की स्किल बेस्ड इंडस्ट्री में राह आसान करने के लिए सरकार बैंकों, के जरिए भी उन्हें वित्तीय मदद पहुंचाती है।
   देश में करीब 80 फ़ीसदी कंपनियां भी कुशलता की कमी को मान रही हैं। ऐसे में उत्पादन और सेवाओं के लिए कामगारों की कमी मेक इन इंडिया के सपने को तोड़ सकती है। जब देसी कंपनियों को ही कुशल कारीगर नहीं मिल रहे तो अर्थव्यवस्था में तेज़ी और विदेशी निवेश के आने पर कुशल कारीगरों की ज़रुरत से कैसे निपटा जाएगा ? अगर यह स्थिती नहीं सुधारी गई तो मेक इन इंडिया का जज्बा मेड इन चाइना के आगे अपने घुटने टेक देगा । टाटा कंपनी और आईसीआईसीआई जैसी संस्थाओं ने स्किल डेवलपमेंट के मूल मंत्र को काफ़ी पहले ही समझ लिया था। आज वो अपनी कंपनी और संस्थाओं में कुशल कारीगरों की ज़रुरत को अपनी ख़ुद की सीएसआर योजनाओं के द्वारा ही पूरा कर रही हैं। सभी कंपनियों को स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना चाहिए। सेंटर फॉर सिविल सोसायटी विकल्प वाउचर्स प्रोग्राम के ज़रिए स्किल डेवलपमेंट के काम में अनोखे प्रयोग कर रहा है।
     देश में 53 फीसदी कर्मचारियों को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देने की जरूरत है। विकास, निवेश और नौकरी के अवसर बढ़ाना और डिमांड-सप्लाई को बेहतर बनाने के लिए स्किल डेवलपमेंट के जरिये युवाओं को ट्रेंड करना चाहिए। लेकिन 19 से 24 वर्ष की आयु के मात्र पांच फीसदी ही व्यावसायिक शिक्षा के जरिये ट्रेंड हो पाते हैं। स्किल डेवलपमेंट के जरिये लक्षित 50 करोड़ लोगों में कम से कम 25 करोड़ ग्रामीण लोगों को गांवों से जुड़े लघु-मझोले उद्योगों की ट्रेनिंग मिलेगी तो इससे ज्यादा रोजगार पैदा होंगे। केंद्र सर्कार ने 1500 करोड़ रुपए की दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना शुरू की है । डिजिटल वोउचर द्वारा पैसा सीधे छात्रो के खाते में जायेगा। अगर हम नौकरियों का सृजन करते हैं तो हमारी आर्थिक वृद्धि की दर स्वतः ही बढ़ जायेगी। आज भारत के युवाओं का मुकाबला दुनिया के युवाओं से भी है। ओबामा ने कहा था कि जब मैं भारत जाऊंगा तो 21 हजार नौकरियां लेकर आऊंगा। दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्ष आते हैं, तो अपने देश को यह बता कर आते हैं कि वे भारत से इतनी नौकरियां लायेंगे।
     प्रशिक्षकों की कमी के कारण लोगों को ट्रेनिंग देने की रफ्तार धीमी है। 2008 के वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत की युवा पीढ़ी के लिए इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीटय़ूट्स बनाये जायें।  2009 में वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने एक हजार आइटीआइ की घोषणा कर दी थी। देश में 10,000 से अधिक आईटीआई हैं। इनमें करीब 15 लाख सीटें हैं लेकिन 75,000 प्रशिक्षकों की कमी है।
     अगर बीते दस साल का रिकॉर्ड  देखते है तो देश में जॉबलेस ग्रोथ हुई है। हालात यह है की चंद पदों के लिए हजारों लाखों लोग आवेदन करते है । 18 से 23 साल की उम्र के युवाओं की संख्या तकरीबन 15 करोड़ है। युवा जल्दी से जल्दी जॉब पाने की जुगत में महंगे कोर्स तो कर लेते हैं लेकिन जब इन कोर्सो से मिले अनुभव की बात आती है तो वे कार्यस्थल पर फिट नहीं बैठते। युवाओं को चीजों को बेहतर ढंग से मैनेज करने की कला आनी चाहिए। सोचना यह है कि आगामी वर्षो में इनके लिए नौकरियां कहां से आयेंगी ?  बेरोजगार इंजीनियर की संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है। डिग्री होल्डर इंजीनियर कंप्यूटर फ्रैंडली तो हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में उनसे विशेषज्ञता की जरुरत है उसमें उन्हें कुशलता हासिल नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं में चुनिंदा स्किल्स में मात खा जाने के कारण मेडिको युवा इन अवसरों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
    नई चुनोतियों से मुकाबले के लिए युवाओं को  स्वयं को तैयार करना होगा। युवाओं की शारीरिक क्षमता का स्तर नीचे आया है। इसलिए बडी से बडी भर्ती में भी सेना को निराशा ही हाथ लगती है। आज सेना को अपने स्तर के लायक युवा नहीं मिल पा रहे है। युवाओं को अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ानी होगी। जो युवा शिक्षा  क्षेत्र में जाना चाहते है  वो अपनी जानकारी बढ़ाएं। विषय की गहरी जानकारी शिक्षा क्षेत्र में स्थिरता पाने की पहली शर्त है। लेकिन जनरल नोलेज का कम पाया जाना चिंता का विषय है। आजकल के छात्रो को गणित से बहुत डर लगता है  बैकिंग क्षेत्र पूरी तरह गणनाओं पर ही चलता है। वे छात्र जिनकी कैलकुलेशन पॉवर अच्छी है वो बैकिंग क्षेत्र में  बहुत आगे तक बढते हैं। इसके साथ ही करेंट नॉलेज भी जरूरी है।  मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्बा है । मीडिया डेड लाइन बेस्ड प्रोफेशन है जहां टाइम का मतलब ही सफलता है। भारतीय छात्र आमतौर पर लेटलतीफ होते है इसलिए वो मुकाबले में टिक नहीं पाते है । इस फील्ड में हिंदी-इंग्लिश दोनों ही भाषाओं पर पकड बहुत जरूरी है। स्किल डेवलपमेंट सतत प्रक्रिया है। अगर कोई जिज्ञासु हैं तो किसी भी क्षेत्र में अपनी स्किल्स बढा सकता हैं। व्यक्ति के विकास की जिम्मेदारी उसकी स्वयं की है। सरकारें तो केवल सहारा दे सकती है। सरकारों पर पूरी तरह निर्भर हो जाना स्वस्थ समाज का लक्षण नहीं है।
डॉ रजनीश त्यागी

3 thoughts on “मेक इन इंडिया के लिए कौशल विकास जरुरी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख अच्छा लगा , एक बात मैं भी ऐड करना चाहूँगा कि मैनुफैक्चरिंग के लिए और नए नए प्लांट लगाने के लिए भूमि की बहुत आवश्कता है . किसानों का रोष जाएज़ है . टीवी पे देख रहा था , किसान मुजाहरे कर रहे थे जिन की भूमि तो ले ली गई लेकिन कितने वर्षों से उन्हें मुआवजा नहीं मिला , ना उन की कोई सुनवाई है . यह बिलकुल गलत है . अब जो भूमि अधिग्रैह्न्न की बात चल रही है , हर देश में compulsary purchase of land होती है लेकिन मैं सोचता हूँ कि हमारे गरीब किसान की जमीन ही रोटी होती है , इस लिए उन को उन की जमीन की डब्बल कीमत दे देनी चाहिए , वोह भी land equire करने से पहले ताकि वोह ख़ुशी ख़ुशी किसी और जगह पहले से भी ज़िआदा जमीं ले सके .

    • विजय कुमार सिंघल

      मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ. नए बिल में किसानों को मार्किट रेट से चार गुना मुआवजा देने की बात है.
      इस बिल पर हल्ला वे लोग मचा रहे हैं जिनके शासन में किसानों की जमीन लेकर भी आजतक मुआवजा नहीं दिया गया. वर्तमान सरकार ने स्पष्ट प्रावधान किया है कि पहले मुआवजा दिया जायेगा, फिर जमीन ली जाएगी. विकास के लिए यह आवश्यक है.

Comments are closed.