राजनीति

जम्मू -कश्मीर में आतंकी हमले आखिर कब तक ?

जम्मू कश्मीर में आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक पहल अब धीरे- धीरे ही सही परवान चढ़ने लग गयी है। हालांकि बीच- बीच में कुछ तथाकथित सकेुलर दल जिन्हें भाजपा -पीडीपी की दोस्ती हजम नहीं हो पा रही है वही लोग राज्य विधानसभा में और मीडिया तथा टिवटर आदि के माध्यम से राज्य सरकार व दोस्ती को बदनाम करने का षड़यंत्र करते रहते हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सभी लोग करते भी रहेंगे। आज जम्मू कश्मीर जिन सभी प्रकार की समस्याओं से ओत प्रोत हो रहा है उससे साफ प्रतीत हो रहा है कि इन सभी की जड़ में पूर्ववर्ती सरकारों का कामकाज ही था। विगत दिनों जम्मू कश्मीर में एक बार फिर बेमौसम बारिष से बाढ़ का खतरा मंड़रा गया। केंद्र सरकार ने पिछली बार की तरह से इस बार भी तुरंत कार्यवही की और सहायता उपलब्ध करा दी इससे एक राजनैतिक संकेत भी दिया गया कि अब मुफ्ती मोहम्मद सईद की मोदी के साथ दोस्ती नये सिरे से परवान चढ़ेगी।

अभी विगत दिनों जम्मू – कश्मीर के मुख्यमंत्री ने नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से विभिन्न समस्याओं को लेकर मुलाकात की । इस बैठक में कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का मुददा भी उठा। जिसे मुख्यमंत्री सईद ने स्वीकार भी कर लिया है। गृहमंत्री से मुलाकात के बाद सईद ने बताया कि कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए राज्य सरकार जल्द ही समग्र टाउनशिप के लिए जमीन अधिग्रहण करेगी और घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उसे उपलब्ध करायेगी।

उधर घाटी के अलगाववादियों ने सरकार की इस पहल का कड़ा विरोध जताना शुरू कर दिया है और हड़तालों आदि का आयोजन भी शुरू कर दिया है। इससे साफ पता चल गया है कि कश्मीरी पंडितों की घरवापसी की राह में कितने कांटे भरे पड़े हैं। अलगावादी नेता यासिन मलिक के बयान बेहद शर्मनाक और नफरत भरे हैं। इतना ही नहीं उनके समर्थन में अन्य अलगावादी नेता भी पूरे ज़ोर शोर से लग गये हैं ।
लेकिन राज्य के लिए सबसे बड़ी आतंकवाद और सीमा पार से घुसपैठ का खतरा लागातार बना हुआ है। भारतीय सेनाओं की सख्ती से सीमा पर फायरिंग तो कुछ हद तक नियंत्रित हो गयी है लेकिन आतंकवादी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। विगत 6 अप्रैल को आतंकियों ने ताबड़तोड़ तीन घंटे में तीन हमले कर दिये। यह हमला उस समय किया गया जब मुख्यमंत्री एक कार्यक्रम के दौरान दावा कर रहे थे कि कश्मीर दुनिया का सबसे शांत इलाका है।

यह हमले बारामूला, शोपियाँ  तथा त्राल आदि जगहों पर किये गये। इससे पूर्व भी दो आतंकी हमले किये गये। सबसे बड़ी बात यह है कि आतंकवादी अपने हौसलों को बरकरार रखने के लिए और अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने के लिए इस प्रकार के हमलों को नये सिरे से अंजाम दे रहे हैं तथा अब सोची- समझी रणनीति के तहत सुरक्षाबलो को अपना निशाना बना रहे हैं। आतंकी संगठनों को अभी लग रहा है कि सईद सरकार बेहद कमजोर है इसका लाभ उठाया जा सकता है। उधर खुफिया एजेंसियों को इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि आगामी गर्मियों में आतंकी संगठन अपनी गतिविधियों को और तेज कर सकते हैं तथा सुरक्षा बलों को ही अधिक से अधिक निषाना बनाने की फिराक में है।

वहीं यह भी खबर आ रही है कि पाकिस्तान में भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हाफिज सईद एक भारतीय सीमा के काफी करीब देखा गया है। जब से वह सीमा पर देखा गया है तभी आतंकी हमले हुये हैं। खुफिया एजेंसियों गके पास इस बात की भी जानकारी है कि कम से कम 60 आतंकवादी सीमा पार से घुसपैठ करने पर आमाद है। उनको पाक सेना व आई एस आई की मदद मिल रही है। हर ग्रुप में 15- 15 सदस्य हैं। इस बात की भी आशंका है कि एक ग्रुप संभवतः प्रवेश करने में सफल भी हो चुका है। वही इन हमलों को अंजाम भी दे रहा है। इन गतिविधियों के बीच सेना व मुख्यमंत्री के बीच सुरक्षा को लेकर एक हाई लेवल मीटिंग भी हुई ।

दूसरी ओर जम्मू कश्मीर विधानसभा में चल रही कार्यवाही के दौरान एक भाजपा विधायक पढानिया ने हुर्रियत नेताओं के सुरक्षा कवच पर प्रष्न किया जिससे खुलासा हुआ है कि हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर कम से कम 10 करोड 58 लाख रूपये खर्च हो रहे हैं। उसके बाद एक और भाजपा विधायक राजेंद्र गुप्ता ने दावा किया कि विगत पांच वर्षो से हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर 5 अरब रूपये खर्च हो चुके हैं । इसके लिए तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार काफी हद तक जिम्मेदार है।

यह देष का व जम्मू कश्मीर राज्य का बड़ा दुर्भाग्य है कि जो लोग भारतीय सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करते हैं तथा उनके ब्ल्लिों आदि को छीने का प्रयास करते हैं,कष्मीर घाटी में खुलेआम भारत विरोधी गतिविधियां करते हैं , पाक जिंदाबाद के नारे लगाते हैं, झंडा फहराते हैं तथा यहां तक कि अब तो कुख्यात आतंकी संगठन आईएस का झंडा तक फहराने लग गये हैं ऐसे तथाकथित भारतविरोधियों की सुरक्षा पर इतना अधिक खर्च किया जा रहा है तथा उन्हें 24 घंटे सुरक्षा गार्ड तक उपलब्ध कराया जा रहा है। अब अगर कश्मीर में शांति स्थापित हो रही है तब भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त इन संगठनों को सुरक्षा क्यों उपलब्ध करायी जा रही है तथा इनसे वार्ता करने के लिए दबाव क्यों बनवाया जा रहा है।

चाहे जो हो अब यह बात साफ हो गयी है कि मुस्लिम तुष्टीकरण की आग में जल रही पर्वूवर्ती कांग्रेस की सरकारों  व राज्य सरकार ने ही हुर्रियत रूपी समस्या को जन्म दिया है और आरोप लगाने का प्रयास भाजपा पर किया जा रहा है। दूसरी ओर वर्तमान पीडीपी- भाजपा गठबंधन के कारण एक बड़ा बदलाव यह आया है कि राज्य विधानसभा में आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान विरोधी नारे लगाये गये और पाकिस्तान के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव पास किया गया। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने आतंकी हमलांे की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा बयान भी दिया।

वैसे भी आज सीमावर्ती महत्वपूर्ण राज्य जिन आंतरिक और वाहय संकटों के दौर से गुजर रहा है उसे निपटने के लिए मौजूदा गठबंधन का सफल होना और कार्यकाल केा पूरा करना बेहद जरूरी है। इस मार्ग से ही अलगाववाद पर कुछ नियंत्रण लगाया जा सकता हैं अलगावादी नेताओं को रोका जा सकता है।

मृत्युंजय दीक्षित

One thought on “जम्मू -कश्मीर में आतंकी हमले आखिर कब तक ?

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. जब तक कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ साथ अन्य भारतीयों को नहीं बसाया जायेगा तब तक वहां शान्ति की आशा व्यर्थ है. इसमें धारा ३७० बहुत बड़ी बाधा है. उसको हटाना या शिथिल करना आवश्यक है.

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