कविता

दिल चाहता है।

कभी कुछ कहने को, कभी चुप रहने को
कभी गुनगुनाने को, कभी मुस्कराने को
तो कभी सिर्फ़ तुझे सुनते रहने को
दिल चाहता है।

कभी मासूम बन जाने को, तो कभी तेरे लिये दुनिया से टकराने को
कभी तेरी तस्वीर समझकर हवाओं से बातें करने को
कभी उनही हवाओं का रूख मोड़ देने को, तो
कभी तेरे लिये ये सारी दुनिया छोड़ देने को दिल चाहता है।

कभी तुझे चाहने को तेरे साथ वक्त विताने को, तो
कभी तेरी यादों मे खो जाने को
कभी तुझसे देर तक बातें करने, कभी चुपचाप सो जाने को, तो
कभी कहीं दूर किसी अनजान भीड़ मे खो जाने को दिल चाहता है।

कभी नदी किनारे बैठ कर तुझे सताने को अपने हाथों से तुझपर पानी उछालने को, तो कभी उसी वक्त तुझसे लिपट जाने को और
हमेशा के लिये तुझमे सिमट जाने को दिल चाहता है।

कभी तुम्हारे साथ गाने को, जोर से चिललाने को, तो
कभी तुझसे रूठ जाने को और रूठ कर भी तुझे हँसाने को
कभी अकेले में तेरे साये से बात करने को, तुझे याद करने को, तो
कभी तेरे लिये पागल भी हो जानें को दिल चाहता है।

कभी सबको बताने को, तो कभी जमाने से तुझे छुपाने को, तो
कभी तुझपर मिट जाने को दिल चाहता है।

तेरे कहीं जानें पर डर सा लगता है, तेरे विना ये शहर जहर सा लगता है
तू न मिले तो ये जहर पी जाने को, तो कभी मर-मिट जाने को, तो
कभी तुझे देखकर चलने वाली इन साॅसों का रुक जाने को
दिल चाहता है।

दयाल कुशवाह

पता-ज्ञानखेडा, टनकपुर- 262309 जिला-चंपावन, राज्य-उत्तराखंड संपर्क-9084824513 ईमेल आईडी-dndyl.kushwaha@gmail.com

One thought on “दिल चाहता है।

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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