“आस टूटने लगी है”
बयना ने उनकी हर कूबत बता दिया
जिसने इस दर पर सेहरा सजा दिया
भूल से बैठे थे उस गाँव से आकर
मोहल्ले ने घेंरकर समधी बना दिया ||
चाहत है मौसम में बारात मिल जाय
तिलक में थालीभर खैरात मिल जाय
लडके तो हैं अपने गाँव कुंवारें बहुत
बरदेखुवा आ जाएँ तो बात बन जाय ||
किसको बताएं इसके पढ़ाई की बात
नकली डिग्री लिए इतराए दिन-रात
कैसे घर बसाऊं बहू कहाँ से लाऊं
गिरवी है खेती बेटी ब्याहने के बाद |
बाबु की उमर हाय ढलने लगी है
सफ़ेद बालों में टाल पडने लगी है
ममता बेसुध है घर के आँगन में
आस परछावन की अब टूटने लगी है ||
महातम मिश्र
बहुत सुंदर श्रीमान जी मुक्तक से बनी कविता!!
sadr dhanyvad shri ramesh singh ji