कविता

मवाद

धर्म जब तक
मंदिर की घंटियों में
मस्जिद की अजानों में
गुरूद्वारे के शब्द-कीर्तनों में
गूंजता रहे तो अच्छा है
मगर जब वो
उन्माद-जनून बनकर
सड़कों पर उतर आता है
इंसानों का रक्त पीने लगता है
तो यह एक गंभीर समस्या है?

एक कोढ़ की भांति हर व्यवस्था और समाज को
निगल लिया है धार्मिक कट्टरता के अजगर ने।
अब कुछ-कुछ दुर्गन्ध-सी उठने लगी है
दंगों की शिकार क्षत-विक्षप्त लाशों की तरह
सभी धर्म ग्रंथों के पन्नों से!

क्या यही सब वर्णित है
सदियों पुराने इन रीतिरिवाज़ों में?
रुढियो-किद्वान्तियों की पंखहीन परवाजों में?

ऋषि-मुनियों, पग्म्बरों, साधू-संतों द्वारा
उपलब्ध कराए इन धार्मिक खिलौनों को
टूटने से बचने की फ़िराक़ में
ताउम्र पंडित-मौलवियों की डुगडुगी पे
नाचते रहेंगे हम बन्दर-भालुओं से …!

क्या कोई ऐसा नहीं जो एक थप्पड़ मारकर
बंद करा दे इन रात-दिन
लाउडस्पीकर पर चींखते धर्म के
ठेकेदारों के शोर को?
जिन्हें सुनकर पक चुके हैं कान
और मवाद आने लगा है इक्कीसवी सदी में!

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

2 thoughts on “मवाद

  • मनोज पाण्डेय 'होश'

    अच्छी रचना है।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन
    सच्ची बात

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