सामाजिक

एक अपील…

बलात्कार भी “लूट” का ही एक प्रकार है जिसमें “धन” की जगह “तन-मन” को लूटा जाता है।

लूट की घटनाओं में लुटेरों को दंड दिए जाने के अलावा आमजन को सुरक्षित रहने के लिए जागरूक किया जाता है कि रात को दरवाजे जाँचकर सोयें, नौकरों की सूचना पुलिस थाने में दर्ज कराएँ, अधिक पैसे लेकर अकेले यात्रा न करें आदि। इन सुरक्षा तकनीकों को बताने का अर्थ लुटेरों को निर्दोष बताकर लुटे गये व्यक्ति/ परिवार को दोषी बताना कदापि नहीं होता।

उसी तरह बलात्कार की घटनाओं में बलात्कारियों को सजा दिए जाने के अलावा ऐसी घटनाओं से स्वयं को बचाने के लिए देर रात बाहर न निकलने, किसीपर अंधाविश्वास न करने, शराबखाने आदि से दूर रहने, पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण न करने की बातें बताई जाती हैं और चूँकि बलात्कार की घटनाएँ अधिकतर लड़कियों के ही साथ होती सो ये उनके लिए ही कहा जाता है। इसका प्रयोजन किसी भी प्रकार से बलात्कारी को भोला-भाला बताकर पीड़ितापर दोष डालना नहीं होता।

टीवी चैनलों की बातों में आकर भ्रमित हो के इनको अपनी स्वच्छंदता का हनन मान उत्तेजित हो उठना समझदारी नहीं। हर अपराध को रोकने के लिए प्रशासन है किन्तु सबसे बड़ा दायित्व हमारा अपना है कि हम खुद को सुरक्षित रखें। एकबार दुर्घटना घट जाने के बाद सिवाए पछताने के कुछ नहीं बचता। इसलिए अपने लिए हमें स्वयं चौकस रहना होता है।

किसीपर कोई दबाव नहीं डाल सकता। जिसे जैसे रहना, उसे वैसे रहने का अधिकार संविधान देता है। जरूरत केवल इतनी सी बात को ध्यान में रखने की है कि जिस चीज को आप “मूल्यवान/ अनमोल” मानते हैं उसकी रक्षा करना सबसे ज्यादा आपकी जिम्मेदारी है क्योंकि आपको वो सबसे ज्यादा प्यारी है।

बाकी जीवन आपका, निर्णय आपका

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

2 thoughts on “एक अपील…

Comments are closed.