कविता : रोशनी की ही विजय हो
दीप-मालाओ !
तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो ।
छा गया है जगत में तम
सघन होकर ,
जी रहे हैं मनुज
जीवन-अर्थ खोकर ,
कालिमा का
फैलता अस्तित्व क्षय हो ।
रात के काले अँधेरे
छल लिए ,
बस तुम्हीं
घिरती अमा का हल लिए ,
जिंदगी हर पल
सरस, सुखमय , अभय हो ।
दिनकरों सम
दर्प-खण्डित रात कर दो ,
असत-रिपु को
किरण-पुंजो !
मात कर दो ,
फिर उषा का आगमन
उल्लासमय हो ।
दीप – मालाओ !
तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो।
—त्रिलोक सिंह ठकुरेला