कविता

हो हिन्दी का गुणगान

 

मातृ भूमि है भारत अपनी
हिन्दी राष्ट्र की भाषा है
कितनी सुन्दर कितनी अच्छी
अपनी हिन्दी भाषा है
हिन्दी में है बसी संस्कृति
हिन्दी अपनी आन है
हिन्दी अपना गौरव है
और हिन्दी अपनी शान है
हो प्रसार नित ही हिन्दी का
यह सबकी अभिलाषा है
हिन्दी राष्ट्र की अस्मिता है
हिन्दी गौरव गाथा है
करना सबको केवल इतना
हिन्दी जीवन में अपनायें
हिन्दी हो अनिवार्य विषय
नित हिन्दी की गाथा गायें
सरकारी काम हो हिन्दी में
बस इतना सा जो कर पाये
हिन्दी भारत का भाग्य बने
हिन्दी रग रग में बस जाये
हिन्दी हिन्द की शान बने
लो आज प्रतिज्ञा लेते हम
हम सब मिल हिन्दी अपनायें
भारत का गौरव बनते हम

— पुरुषोत्तम जाजु

पुरुषोत्तम जाजू

पुरुषोत्तम जाजु c/304,गार्डन कोर्ट अमृत वाणी रोड भायंदर (वेस्ट)जिला _ठाणे महाराष्ट्र मोबाइल 9321426507 सम्प्रति =स्वतंत्र लेखन

4 thoughts on “हो हिन्दी का गुणगान

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया कविता ! जय हिंदी !!

    • पुरुषोत्तम जाजु

      आभार आपका महोदय
      !!जय हिन्दी!!

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना
    हिंदी हिन्द की पहचान
    जब किसी को समझते नहीं देखती हूँ तो गुस्सा आता है मुझे भी

    • पुरुषोत्तम जाजु

      धन्यवाद् आदरणीया
      हिन्दी तो हमारी अस्मिता है

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