कविता

सहनशील भारत

 

यही देश है,जहाँ धरा पर,
जनम लिया था कान्हा ने!
जीवन में खुशियाँ लाने का,
मरम दिया था कान्हा ने।
कान्हा की गाथा नित हमको,
बात यही सिखलाती है!
सौ गाली से ऊपर सहना,
कायरता कहलाती है!-1

सहनशीलता के कारण ही,
भारत टुकड़ों में बाँटा!
अब तक पाल रहे नागों को,
खाकर नित मुँह पे चाँटा!
सहनशीलता के कारण हम,
मन्दिर नहीं बना पाये!
रोज यहाँ पर गाय कटी हम,
माँ को नहीं बचा पाये!-2

अब गिनती सौ होने को हैं,
अब करनी तैयारी है!
अब तक हमने सहा बहुत है,
आज तुम्हारी बारी है!
सहनशीलता का दामन जो,
प्यारे हमसे रूठेगा!
जन्नत की बस टिकट कटेगी,
और न कोई छूटेगा!-3

गाली देना दूर बहुत तुम,
माँ को घूर न पाओगे!
गाय काटने की छोडो तुम,
बकरे से घबराओगे!
खूब करो तुम मस्ती लेकिन
ये पैगाम हमारा है!
मेरी रचना सौ गलती का,
करती तुम्हें इशारा है!-4

© शिव चाहर “मयंक”

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]

One thought on “सहनशील भारत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सही कहा आप ने ,अब तो सहनशीलता की हद हो गई है ,किसी ज़माने में लाखों मंदिर ढा दिए गए और उन मंदिरों के पथरों को बेईज़त किया गिया और जजिया भी वसूल किया गिया लेकिन जिन की अय्धिया थी वोह अभी तक राम मंदिर भी नहीं बना सके ,कैसी दुनीआं में हम रहते हैं .

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