सहनशील भारत
यही देश है,जहाँ धरा पर,
जनम लिया था कान्हा ने!
जीवन में खुशियाँ लाने का,
मरम दिया था कान्हा ने।
कान्हा की गाथा नित हमको,
बात यही सिखलाती है!
सौ गाली से ऊपर सहना,
कायरता कहलाती है!-1
सहनशीलता के कारण ही,
भारत टुकड़ों में बाँटा!
अब तक पाल रहे नागों को,
खाकर नित मुँह पे चाँटा!
सहनशीलता के कारण हम,
मन्दिर नहीं बना पाये!
रोज यहाँ पर गाय कटी हम,
माँ को नहीं बचा पाये!-2
अब गिनती सौ होने को हैं,
अब करनी तैयारी है!
अब तक हमने सहा बहुत है,
आज तुम्हारी बारी है!
सहनशीलता का दामन जो,
प्यारे हमसे रूठेगा!
जन्नत की बस टिकट कटेगी,
और न कोई छूटेगा!-3
गाली देना दूर बहुत तुम,
माँ को घूर न पाओगे!
गाय काटने की छोडो तुम,
बकरे से घबराओगे!
खूब करो तुम मस्ती लेकिन
ये पैगाम हमारा है!
मेरी रचना सौ गलती का,
करती तुम्हें इशारा है!-4
© शिव चाहर “मयंक”
सही कहा आप ने ,अब तो सहनशीलता की हद हो गई है ,किसी ज़माने में लाखों मंदिर ढा दिए गए और उन मंदिरों के पथरों को बेईज़त किया गिया और जजिया भी वसूल किया गिया लेकिन जिन की अय्धिया थी वोह अभी तक राम मंदिर भी नहीं बना सके ,कैसी दुनीआं में हम रहते हैं .