कुण्डलियाँ
मन में खिलते सहज ही, खुशियों के जलजात।।
खुशियों के जलजात, सदा ही लगती प्यारी।
हों निहार कर धन्य, करें सब कुछ बलिहारी।
‘ठकुरेला’ कविराय, चली आयी परिपाटी।
लगी स्वर्ग से श्रेष्ठ, देश की सौंधी माटी।।
देता जीवन राम का, सबको ही सन्देश।
मूल्यवान है स्वर्ग से, अपना प्यारा देश।।
अपना प्यारा देश, देश के वासी प्यारे।
रखें न कोई भेद, एक हैं मानव सारे।
‘ठकुरेला’ कविराय, न कुछ बदले में लेता।
होता देश महान, बहुत कुछ सबको देता।।
— त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बहुत अच्छी कुण्डलियाँ !