कविता : होली आई
अब के आबे जब होली पिया
ऐसो रंग लगइयों पिया
तन मन भीजो दियो
प्रीत के रंग में डूबो दियो इतना
अंग – अंग मेरो भीगो दिया
लाल रंग मुझे भावे अति पिया
लाल -हरे रंग में भिगो पिया
मुझे अपने उर लगा लियो
नही भावे मुझे सफेद -काला
बैजनी रंग मे भिगो पिया
अंग -भंग करा लियो
एक बरस तक मचे धूम होली की
ऐसी मेरी होली मनवा दियो
संग सनेही न भावे मुझको
देवर जेठ न भावे मुझे
सखा मित्र सबे छोड मुझे
अपनो बना लियो रे
— डॉ मधु त्रिवेदी
वाह !