गीतिका/ग़ज़ल

“बहाना मत बना देना”

“गज़ल”
बहर-1222 1222 1222 1222
मतला
मिलो तुम आज मेले में बहाना मत बना देना
किताबों में न खो जाना पहाड़ा मत गिना देना
शेर
कई सालों बिता डाले दशहरे में नहीं आए
पुराने साथ के हमदम अभी वादे निभा देना।।
तुम्हारी याद इस दिल से कभी जाती नहीं साथी
बने किस मोम के हो तुम मुझे इतना बता देना।।
मिले हम जिस घडी में वो घडी कितनी दिवानी थी
भुला बैठे वफ़ा सारी चलों फिर से वफ़ा देना।।
कहाँ जीता भला कोई बहस करके यहाँ तुमसे
तुम्हारी जीत का जलसा ख़ुशी से तुम मना देना।।
बहुत चालाक बनते हो बिना मरजी कहाँ आते
कभी वो बचपने की लय तनिक फिर गुनगुना देना।।
मक्ता
मुझे मालूम है की पालते तुम फर्ज पर खुशियाँ
निभा लेना सुनो गौतम मगर मिलके सुना देना।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ