कविता

माँ

माँ

तेरी कोख में मैंने जनम लिया
मेरा भाग्य निखर के आया माँ
तेरे ही आंचल में मेरा
सारा ब्रह्माण्ड समाया माँ

हर वक्त रहे आशीष तेरा
रहे तेरी गोद का साया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ

अपनी ममता की दौलत को
तूने हम पर सदा लुटाया माँ
तेरे चरण तले सारे तीरथ
और चारों धाम को पाया माँ

तेरे रोम रोम में है सारे
वेदों का सार समाया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ

तेरे साथ जुड़ा जो ये रिश्ता
सबसे अनमोल कहाया माँ
पाकर पावन सानिध्य तेरा
मेरा जीवन मुस्काया माँ

तेरे दूध का मोल भी तो मुझसे
कभी गया नहीं है चुकाया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ

तेरा स्नेहिल करुण हृदय मैंने
ईश्वर सदृश्य ही पाया माँ
दिल से निकला आशीष तेरा
ईश्वर भी टाल न पाया माँ

जो तुझे कभी अपना न सका
वो सबसे हुआ पराया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ ||

पूनम पाठक “पलक”

पूनम पाठक

मैं पूनम पाठक एक हाउस वाइफ अपने पति व् दो बेटियों के साथ इंदौर में रहती हूँ | मेरा जन्मस्थान लखनऊ है , परन्तु शिक्षा दीक्षा यही इंदौर में हुई है | देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से मैंने " मास्टर ऑफ़ कॉमर्स " ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री प्राप्त की है | इंदौर में ही एकाउंट्स ऑफिसर के जॉब में थी | परन्तु शादी के बाद बच्चों को उचित परवरिश व् सही मार्गदर्शन देने के लिए जॉब छोड़ दी थी| अब जबकि बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं तो अपने पुराने शौक लेखन से फिर दोस्ती कर ली है | मैं कविता , कहानी , हास्य व्यंग्य आदि विधाओं में लिखती हूँ |

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