इतिहास

पं. विष्णुलाल शर्मा द्वारा ऋषि दयानन्द के दर्शन का वृतान्त

ओ३म्

पं. विष्णुलाल शर्मा उत्तर प्रदेश में अवकाश प्राप्त सब जज रहे। स्वामी दयानन्द जब बरेली आये तब 11 वर्ष की अवस्था में पं. विष्णुलाल शर्मा जी ने वहां उनके दर्शन किए थे। उन्होंने इसका जो प्रमाणित विवरण स्वस्मृति से लेखबद्ध किया उसका वर्णन कर रहे हैं। वह लिखते हैं कि श्री स्वामी दयानन्द जी महाराज जब बरेली आकर लाला लक्ष्मीनारायण खंजाची साहूकार की कोठी में निवास कर रहे थे, तब मैंने उनके दर्शन किये। उस समय मेरी आयु 11 वर्ष की थी। व्याख्यान में बड़ी भीड़ होती थी परन्तु एक अजीब सा सन्नाटा सभा में दिखाई देता था। प्रशान्त सरोवर की तरह लोग शान्त चित्त होकर आपके मनोहर वचनों को सुनते थे। आपका वेश बड़ा सादा था। आप टोपा और मिर्जई पहने चौकी पर वीरासन लगाये एक देवमूर्ति के समान देदीप्यमान दिखाई देते थे। स्वर बड़ा मधुर तथा गम्भीर था। बहुत से आदमी तो आपका स्वरूप और शारीरिक अवस्था देखने तथा बहुत से श्लोक और मंत्र सुनने के लिए ही जाते थे। निदान सब ही आपके दर्शन से कुछ न कुछ प्राप्त कर लेते थे। मेरे चित्त में तभी से वैदिक धर्म का वह अंकुर उत्पन्न हुआ। मैं जब आगरा कालेज चला गया तो वहां पर देखा कि एक साधरण व्यक्ति चौबे कुशलदेव, जिन्होंने कि कुछ दिन तक स्वामी जी की रोटी बनाते हुए उनके चरणों की सेवा की थी, एक अच्छे उपदेश बन गये थे।

 

यह भी जान लेते हैं कि स्वामी दयानन्द 14 अगस्त सन् 1879 को बरेली आये थे और यहां 3 सितम्बर सन् 1879 तक 21 दिनों तक यहां रहे थे। इसी बीच उन्होंने यहां अनेक प्रवचन वा उपदेश दिये। आर्यजगत के विख्यात संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द ने भी अपनी किशोरावस्था में बरेली में ही स्वामी दयानन्द जी के दर्शन किये थे। इस दर्शन और दोनों, गुरु व शिष्य, के परस्पर वार्तालाप व शंका समाधान का ही परिणाम था कि स्वामी श्रद्धानन्द जो पहले लाला मुंशीराम जी कहलाते थे, वह महात्मा मुंशीराम होते हुए स्वामी श्रद्धानन्द बने और देश व समाज की उल्लेखनीय सेवा की। महर्षि दयानन्द की गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को साक्षात क्रियान्वयन का श्रेय भी उन्हीं को है। देश की आजादी से लेकर समाज सुधार और दलितोत्थान आदि अनेकानेक समाजोत्थान के महनीय कार्य उन्होंने किये।

 

पं. विष्णुलाल शर्मा जी से संबंधित उपर्युक्त विवरण सन् 1925 में आर्यमित्र पत्र के दयानन्द-जन्म-शताब्दी अंक में प्रकाशित हुआ था। इसका उल्लेख महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व व कृतित्व को अपने जीवन में अपने चिन्तन व लेखन का लक्ष्य बनाने वाले आर्यजगत के वयोवृद्ध विद्वान डा. भवनानीलाल भारतीय जी ने ‘मैंने ऋषि दयानन्द को देखा’ पुस्तक में भी प्रकाशित किया है। वही मुख्यतः हमारे इस लेख का आधार है। उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं। महर्षि दयानन्द ने व्यक्तित्व का ही कमाल है कि उनके यहां एक रोटी बनाने वाला व्यक्ति धर्मोपदेशक बन गया। हम स्वयं भी ऋषि दयानन्द के साहित्य को पढ़कर व विद्वानों के उपदेश सुनकर आज लेखों के माध्यम से कुछ नाम मात्र सेवा कर पा रहे हैं। महर्षि दयानन्द को सादर प्रणाम। मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सब तोर, तेरा तुझको सौंपते क्या लागत है मोर।‘ इति।

मनमोहन कुमार आर्य

6 thoughts on “पं. विष्णुलाल शर्मा द्वारा ऋषि दयानन्द के दर्शन का वृतान्त

  • विजय कुमार सिंघल

    लेख अच्छा लगा, मान्यवर ! महापुरुषों का सान्निध्य ही नहीं दर्शन मात्र भी बहुतों का जीवन बदल देता है. स्वामी जी का दर्शन लाभ जिनको हुआ वे बहुत भाग्यशाली थे.

  • मनमोहन भाई , पंडित विष्णुलाल शर्मा जी का लिखा वर्णन अच्छा लगा . गुरु नानक देव जी के साथ भी तो बाला और मर्दाना ,सधाह्र्ण आदमी ही थे और आज तक उन का नाम लिया जाता है .गुरु नानक देव जी के पिता महता कालू अपने बेटे को पहचान नहीं सके लेकिन राये बुलार जैसे जागीरदार उन्होंको पहचान गए .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी। किसी भी साहित्य का अध्ययन करते समय हमें सत्य वा विवेक का सहारा लेना होता है। जो बाते सत्य वा प्रमाण सिद्ध हों उन्हें मान लेना चाहिए। हमारे यहाँ १८ पुराण ग्रन्थ है। उन्हें कोई भी पढ़ेगा तो उसमे वर्णित घटनाओं को सत्य नहीं मान सकता। तुलसीदास जी के राम चरित मानस में भी ऐसी कुछ अलंकारिक वा भावनात्मक बातें लिखी हैं जो यथार्थ कदापि नहीं हो सकती। आज कल टीवी पर भी अनेक धर्म गुरु अज्ञान वा अन्धविश्वास परोस रहें हैं। हमें तर्क़ सिद्ध सत्य को ही स्वीकार करना चाहिए। वेदों की यही शिक्षा है. विज्ञानं वाले धर्म से इसी लिए दूर चले गएँ क्योंकि सभी मतों वा धर्मों में तर्कहीन बातें हैं। तर्कहीन बातें सत्य नहीं होती हैं। इसका हम सभी धार्मिक लोगो को ध्यान रखना होता है। महर्षि दयानन्द ने शिवलिंग पर चूहों के चढ़ने पर उन्हें वास्तविक शिव होना अस्वीकार कर दिया था। सादर।

      • मनमोहन भाई , मुझे दुःख इस बात का होता है की जो धर्म गुरु जनता को परोस रहे हैं वोह हिन्दू धर्म का ही नुक्सान कर रहे हैं लेकिन पैसा बनाने के चक्कर में उन्हें कुछ भी दिखाई नहं देता . जाकर नाएक जो इस्लाम का परचार कर रहा है ,वोह हिन्दू ग्रंथों को पढ़ कर ऐसे ऐसे परमान देता है की कोई भी हिन्दू आज तक उस के जवाब नहीं दे सका . मैंने उस के बहुत विडिओ देखे हैं .वोह कहता हैं की हिन्दु धर्म कहता है की रब एक है लेकिन जो लोग ३३ करोड़ देवताओं में विशवास रखते हैं वोह गलत है .वोह कहता है की हिन्दू धर्म में मूर्ती पूजा है ही नहीं .उस के साथ एक दफा शिरी शिरी रवीशंकर को भी बैठे देखा था, मेरे विचार से वोह भी कोई ठोस जवाब नहीं दे सके थे . मनमोहन भाई ,आप जैसे विद्वान है ही कितने इंडिया में ,आम तो सधाह्र्ण जनता ही है ,उन का तो वोह ही हाल है ,जिस लाइ गलीं, उस नाल ही उठ चली . टीवी पर तो हिन्दू धर्म का सत्यानाश ही हो रहा है ,सब चैनल अपनी रेटिंग बढाने के चक्र में हिन्दू धर्म का नुक्सान कर रहे हैं ,तभी तो लोग इस्लाम और इसाई धर्म ग्रहण कर रहे हैं .

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, महान लोगों के व्यक्तित्व का ऐसा ही कमाल होता है कि उनके यहां एक रोटी बनाने वाला व्यक्ति धर्मोपदेशक बन जाता है. आपका सद्प्रयत्न भी अत्यंत सराहनीय और हमारे लिए वरदान स्वरूप है. अत्यंत सुखद व प्रेरक आलेख के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते आदरणीय बहिन जी। आपने लेख पढ़ा और पसंद किया, इसकी मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। आपने टिपण्णी में लेख का सारतत्व प्रस्तुत कर दिया है। हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

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