लघुकथा

लघुकथा : पगलिया

हाथ से अधिक तेज  उसकी जुबान चल रही थी  । उधर अमित का गुस्सा बढ़ता जा रहा था उसकी बकझक से । जिया ने आग्नेय दृष्टि से उसे घूरा फिर पौधों को पानी देने लॉन में आ गई। बर्तन मलते हुए ,कम दिमाग वाली वो पगली सी  किशोरी कभी मुस्कुरा रही थी,तो कभी गालियाँ बक रही थी।
” शिवानी आ गई है क्या  मिसेज़ शर्मा ? ” बाहर  नीरा ने पूछा तो उसकी त्योरियों पर बल पड़ गए।
” हाँ आ गई पगलिया ”
कॉलोनी में इन दिनों काम वालियों का अकाल सा हो गया था ।प्रत्येक गृहणी को एक अदद कामवाली की तलाश थी । उधर सभी के नखरे बहुत थे । ऐसे में उस पगली  को  काम पर रखना , गृहणियों की विवशता थी । काम सब कर देती थी , बस अनाप-शनाप कुछ भी बकती रहती थी।
जब अचानक ही वो वमन करने लगी,चेहरा पीला पड़ गया, तो सबकी वक्र दृष्टि उस पर जम गई। हर घर में यही चर्चा थी ।कुछ निगाहों में सहानुभूति थी,तो कुछ में घृणा, कुछ में कौतुहल तो कुछ में व्यंग्य।
” न जाने किसका पाप लिए घूम रही है । वो तो चलो फिर भी पागल है।पर जिस नीच ने उसके पागलपन का फायदा उठाया थू है उस जानवर पर ” उसने पच्च से थूक दिया।

काफी देर तक नीरा के साथ इधर उधर की करके वह अंदर आई तो जड़ रह गई। देखा तो पगलिया उसके पति की बाँहों में झूल रही है   ।

                                            — ज्योत्स्ना

ज्योत्सना सिंह

नाम- ज्योत्सना सिंह । जन्म- 1974 शिक्षा- एम.ए.( अंग्रेजी साहित्य) बी.एड. व्यवसाय- कई वर्ष तक पब्लिक स्कूलों में शिक्षण कार्य। वर्तमान शहर- बरेली । फ़ोन न- 9412291372 मेल आई डी- jyotysingh.js@gmail. com विधाएँ - कविताएँ, लघुकथा, कहानी, निबन्ध लेख । प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।