गजल…………
काफ़ीया- आ-ओगे, मात्रा भार-24
अतीत को अब कब्र से, कैसे निकालोगे
गुजरे हुये पैगाम को, कितना निहारोगे
वफा सीख लो ताबूत से, रखो सम्हाल के
इस कर्म धर्म मर्म को, कितना बिगाड़ोगे॥
इंसाफ भी इंसाफ को, डरा के जी रहा
दिवारों में अब कितनी, सूली लगाओगे॥
हद के बिना किसकी, औकात है कितनी
बोलो किस वजूद पर, हिमालय बसाओगे॥
रुको गिन लो मजार में, पाषाण हैं कितने
यह बोझ गैर कंधे पर, कबतक उठाओगे॥
रख दो यहीं उतार दो, चट्टान है निचे
फौलाद अपने वक्त का, कैसे हटाओगे॥
जाओ यहाँ से कब्र में, आना है दुबारा
लिख लो किताब. इंचभर खाली न पाओगे॥
महलों पर रंग रौशनी, इसके अभी तलक
शूरमा है गुजरे तख्त का, चादर हटाओगे॥
इंसानियत मरती नहीं, इतिहास है गवाह
पन्ना पलट के देख लो, मुरदा जिलाओगे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी