पिता
मैं मुबारक बात आज कहता हूँ
मैं आपकी तारीफें सिर्फ करता हूँ
मैं पल-पल इंतजार जिनका करता हूँ
मैं आपके दीदार का बयाँ कहता हूँ।
हो तात, पिता भगवंत आप मेरे
गुन-गाऊँ अब आपके कितने घनेरे?
है जन्म-दाता जब आप ही मेरे,
इन लफ्जों से भी आप हो बहुत अनेरे।
छत्र-छाया में आपकी,
मैं भूला हर धूप ग्रीष्म की!
गोद़ में उठा कर, मेरु पे है बैठाया,
मैं लिखूँ तो किस-किस जगह को अब अपनी लिखूँ
मैं लिख दूँ आज एक गज़ल मेरे विश्व की।
शब्द-कोश नहिं भरपूर अब शब्दों से,
गहरे सागर से भी आपका प्रेम जो है,
चुप रहकर अकेले अकेले मुस्कराना,
सात्विकता जैसे आपके जिहान में है!
तारीफें भी कितनी करूँ मैं अब आपकी,
बस अलंकारों से उपन्यास लिखता हूँ
आपकी कमाई की कलम से, भी जो लिखूँ
मैं अपने चंद शब्दों में आपको सिर्फ पिता लिखता हूँ।
फिर भी आपकी कहानी तो अलिखित है!
लफ्ज़ भी मर्शरुफ नहीं आपको लिखने को!
लेके अगर बैठूँ मैं दरिया की स्याही
फिर भी लिख ना पाऊँगा आपको,
आसमान में मेरे दीन-ए-इलाही !
© मयूर जसवानी
प्रिय मयूर भाई जी, अति सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए आभार.
शुक्रिया जी।
बेहद खुबसुरत भावाभिव्यक्ति
आभार जी।