गीत/नवगीत

पिता

पिता..

उनके कदमों पर चलकर अब
उनकी ही भाषा बोल रहे
जिनकी बातें तब ना समझे
आदर्श वही अनमोल रहे

हाथ पकड़ हटिया में जाते
चनाचूर जी भर के खाते
रंग बिरंगी हवा मिठाई
हँसकर पापा हमें दिलाते

निर्मल मन की निर्मल थाती
नित नित जीवन में तोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे

क्रोध कभी ना करते देखा
झूठ कभी ना कहते देखा
विनीत सत्याग्रही पिता को
अन्याय भी न सहते देखा

दीवारों पर सजे चित्र को
धीरे धीरे हम खोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे

वे बरगद बनकर छाँव बने
शीतल मनहर सुख गाँव बने
ढक तपन चुभन के छालों को
टूटे सपनों के पाँव बने

इम्तेहान वाले विषयों के
इंग्लिश हिसाब भूगोल रहे
आदर्श वही अनमोल रहे
—–ऋता शेखर ‘मधु’…..