कविता

कविता : एवरेस्ट की तरह

थी कभी मै
तुम्हारे लिए
हिम पर्वत
जो पिघल
जाया करती थी
तुम्हारे प्यार की
हल्की सी
चिंगारी से ……

तुम खुश हो
जाया करते
मुझे बर्फ से
पानी बनाकर
बह जाती थी
संग तुम्हारे
बिना किसी
लाग लपेट के
किसी नदी की तरह
और तुम छोड़
जाया करते
हर दफा मुझे
उसी हिम पर्वत
की तरह….

सुनो!!!!!!!!
आसान नही
हिम पर्वत की
तरह छोड़ जाना
अब मुझको कि
खड़ी कर दी है
मैंने भी एक दिवार
तुम्हारे और मेरे दरमियान
जिसे भेद पाना
आसान नही……

गढ़ लिया है मैंने भी
आत्मसम्मान और
अपने वजूद की
रोशनी से ……
खुद मे खुद होने की
एक नई परिभाषा
किसी माउंट एवरेस्ट
की तरह जो कभी
पिघला नही करते. …….

पूनम

पूनम विश्वकर्मा

अध्यापिका, बीजापुर, छत्तीसगढ़