कविता

जीने दो

जीने दो

यही है
छोटा सा घर मेरा
ये चार दीवारें
मेरी सीमाएं
मदमस्त दौड लगाती हूं
पर दीवारों से टकराती हूं
स्वाद नहीं
यहाँ खाने में
पानी भी फीका है
ना दोस्त कोई
ना हमसाया
अकेलापन है मेरा साथी
हवा भी नकली
फिज़ा भी नकली
मेरा ये संसार है नकली
क्यों मेरी सुन्दरता पर
इतने मोहित होते हो
मुझसे मेरा घर छीनकर
शीशे में रख देते हो
जैसे तुम जीना चाहते हो
अधिकार अपने मांगते हो
मुझे भी जीने दो
मेरी आजादी भी ना छीनो
जियो और जीने दो

अर्जुन नेगी
कटगांव किन्नौर हिमाचल

अर्जुन सिंह नेगी

नाम : अर्जुन सिंह नेगी पिता का नाम – श्री प्रताप सिंह नेगी जन्म तिथि : 25 मार्च 1987 शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (सिविल इंजीनियरिंग), ग्रामीण विकास मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पेशा : एसजेवीएन लिमिटेड (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में सहायक प्रबन्धक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : सितम्बर, 2007 से (हिमप्रस्थ में प्रथम कविता प्रकाशित) l प्रकाशन का विवरण (समाचार पत्र व पत्रिकाएँ): दिव्य हिमाचल (समाचार पत्र), फोकस हिमाचल साप्ताहिक (मंडी,हि.प्र.), हिमाचल दस्तक (समाचार पत्र ), गिरिराज साप्ताहिक(शिमला), हिमप्रस्थ(शिमला), प्रगतिशील साहित्य (दिल्ली), एक नज़र (दिल्ली), एसजेवीएन(शिमला) की गृह राजभाषा पत्रिका “हिम शक्ति” जय विजय (दिल्ली), ककसाड, सुसंभाव्य, सृजन सरिता व स्थानीय पत्र- पत्रिकाओ मे समय- समय पर प्रकाशन, 5 साँझा काव्य संग्रह प्रकशित, वर्ष 2019 में अंतिका प्रकाशन दिल्ली से कविता संग्रह "मुझे उड़ना है" प्रकाशितl विधाएँ : कविता , लघुकथा , आलेख आदि प्रसारण : कवि सम्मेलनों में भागीदारी l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय –नारायण निवास, कटगाँव तहसील – निचार, जिला – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) पिन – 172118 वर्तमान पता : निगमित सतर्कता विभाग , एसजेवीएन लिमिटेड, शक्ति सदन, शनान, शिमला , जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -171006 मोबाइल – 09418033874 ई - मेल :[email protected]

2 thoughts on “जीने दो

  • राजकुमार कांदु

    इंसान अपने लिए तो तमाम सुख सुविधाओं की चाहत रखता है लेकिन अन्य प्राणियों को नाना तरह से तकलीफ देकर उसमें अपना मनोरंजन ढूँढता है । शीशे के घर में कैद मछली की व्यथा का बखूबी वर्णन किया है आपने । धन्यवाद ।

    • अर्जुन सिंह नेगी

      सार्थक प्रतिक्रिया के लिया हार्दिक धन्यवाद सर

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