कविता : अनिता
अब नही जायेगी अनिता स्कुल
नही चहकेगी घर के आंगन में
किसी चिड़िया की तरह
नही बिनेगी माँ संग
मँहुआ टोरा….
नही तोड़ेगी तेंदु पत्ता
सखियों संग जंगल में
फुदक- फुदक कर
अब नही नहायेगी अनिता
गांव के तालाब में
खिल- खिल कर
सुनाई नही देगी
अब उसकी हँसी
मेले हाट बाजारो मे
नही खेलेंगी इस बरस
रंगो की होली भइया संग
गांव के चौराहे पर
अब नही आयेगी
अनिता लौटकर कभी
बस्तर की इन हरी
वादियों मे मोटिहारिन बनने ….
नही रही अनिता
कि मार दी गई कल ही
कोंटा के बाजार मे
प्रेशर बम से उड़ गये
उसके शरीर के चिथड़े
हाथ कहीं और पैर कहीं
जा गिरा …..
खुन से लथपथ
अनिता का जिस्म
कितना तड़पा होगा
फड़फड़ाया होगा
उसका मन
जाने से पहले
चीख- चीख कर
रोई होगी उसकी आत्मा
उपजे होगें उसके
जेहन मे भी ….
कई अनसुलझे सवाल
कब तक यूँ ही
मासूमो के खुन से
होती रहेगी बस्तर की
भूमि लाल…..
है किसी के पास
इन सवालो का जवाब
बोलो बोलो ना
कोई तो कुछ बोलो ?????
— पूनम विश्वकर्मा