राजनीति

सड़क पर आ गयी यादवी कलह

विगत 140 दिनों से भी अधिक समय से उत्तर प्रदेश में चली आ रही समाजवादी कलह अब सतह पर नहीं अपितु सड़क पर आ गयी है। विगत 23 अक्टूबर को प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव सहित 4 मंत्रियों को बर्खास्त करके संग्राम का श्रीगणेश कर दिया। लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह की अध्यक्षता में हुई समाजवादी बैठक में जिस प्रकार का परिदृश्य मीडिया द्वारा देखा गया उससे समाजवादी सरकार की कलह पूरे देश में जाहिर हो गयी है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के सामने अखिलेश यादव व शिवपाल यादव ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर तीखे तीर चलाये। बैठक में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने भाषण में अपने संघर्ष का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सीघे फटकार लगा दी। उन्होंने उस समय यह ध्यान भी नहीं रखा कि चाहे जो हो कम से कम इस समय अखिलेश यादव संवैधानिक नजरिये से पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह ने जिस प्रकार का भाषण दिया उससे समाजवादी परिवार की छवि में सुधार आने की बजाय उसको गहरा आघात लगा है। मुलायम सिंह ने जिस प्रकार से अपनी बात रखनी शुरू की उससे साफ हो गया है कि उनकी पहली चिंता समाजवादी पार्टी के बिखराव और परिवार को कलह से बचाना है।

मुलायम सिंह ने अपने भाषण में कौमी एकता दल के अंसारी बंधुओं का बचाव किया। अमर सिंह का जोरदार बचाव करते हुए मुलायम सिंह ने उन्हें अपना भाई बताते हुए कहा कि यदि अमर सिंह ने उनकी मदद न की होती तो वे जेल के अंदर अवश्य होते। सपा मुुखिया नेे अपने संघर्षों की याद दिलाते हुए कहा कि जो लोग नारे लगाकर हंगामा कर रहे हैं वो एक लाठी तक नहीं खा सकते। हम हंगामा करने वालों को निकाल बाहर करेंगे। उन्होनें एकदम साफ शब्दों में कहा कि शिवपाल यादव जनता के बीच से निकले हुए बड़े नेता हैं। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। सपा मुखिया ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को चुनौती देते हुए कहा कि तुम्हारी हैसियत क्या है? क्या तुम अकेले चुनाव जितवा सकते हो? हमने ही संविधान में संशोधन करवाकर युवाओं को आगे बढ़ाया लेकिन पद मिल जाने के बाद तुमहारा दिमाग खराब हो गया है। जुआरियों और शराबियों की मदद कर रहे हो।

प्रदेश के राजनैतिक इतिहास में पहली बार किसी दल के सार्वजनिक मंच से प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक ढंग से बेहद अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। अपने भाषण के अंत में सपा मुखिया मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहा कि शिवपाल आपके चाचा हैं उनसे गले मिलो। तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संभवतः बात बन जाये और सुलह हो जाये। लेकिन जब शिवपाल और अखिलेश गले मिलने चले, तभी अखिलेश यादव ने टाइम्स आफ इंडिया में छपी खबर का हवाला देते हुए कहना शुरू कर दिया कि अमर सिंह ने ही उनके खिलाफ एक खबर छपवायी थी जिसमें उनको औरंगजेब और नेताजी को शाहजहां बताया गया था।

इससे शिवपाल यादव और अमर सिंह के खास समर्थक आशु मलिक ने अभद्रता करते हुए मुख्यमंत्री के हाथ से माइक छीन लिया और इस बीच अखिलेश समर्थकों ने जोरदार हंगामा करना शुरू कर दिया यहां तक कि शिवपाल यादव के ऊपर जूते तक फेेंके गये। इसके साथ ही साथ समाजवादी कार्यालय के अंदर और बाहर जबर्दस्त अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया। यह खबरें भी आयीं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके साथ अभद्रता करने वाले आशु मलिक को भी अपनी कार में बिठाकर मुख्यमंत्री आवास तक ले गये। तब यहां तक अफवाहें उड़ती रही कि हो सकता है कि मुख्यमंत्री अपने पद का लाभ उठाते हुए आशु मलिक पर जेल भेजने आदि की कार्यवाही भी करवा सकते है।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच माहौल पूरी तरह से तनावपूर्ण रहा है और स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि आखिर समाजवादी परिवार में सपा मुखिया मुलायम सिंह की कलह को शांत करवाने के प्रयास सफल हो भी पायेंगे कि नहीं। सभी पक्षों के बीच बैठकों का गर्मागर्म दौर जारी है। बीच में कई बार ऐसा लगा कि समाजवादी परिवार में कलह शांत करवाने में सपा मुखिया मुलायम सिंह सफल हो रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई नये लेटर बम को फोड़कर मामले को लगातार गर्मा रहा है।

समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह अपने भाषण में कम से कम यह बात स्पष्ट कर चुके हैं कि वह न तो अपने भाई शिवपाल को छोडेंगे और न ही अमर सिंह को, जबकि पार्टी में सबसे बड़ा विवाद अमर सिंह को ही लेकर दिखायी पड़ रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने समथर््ाकों के साथ अमर सिंह को निकाल बाहर करने के लिए अड़ गये हैं। इसके कारण सपा मुखिया भी कहीं न कहीं अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह कम से कम अपने जीवनकाल में अपनी मेहनत से बनायी पार्टी को 25 साल पूरे होने के अवसर पर बिखरते नहीं देखना चाहते। समाजवादी कार्यकारिणी में जो कुछ हुआ और जिस प्रकार से चाचा-भतीजे ने एक दूसरे पर कीचड़ उछाला और हाथापाई तथा माइक छीनने जैसी अभद्रता आम जनता ने टीवी पर देखी है उससे समाजवादी छवि को गहरा आघात लगा है।

अब सपा मुखिया लाख चाहकर भी समाजवादी कलह को सुलह पर नहीं ले जा सकेंगे। अब परिवार में खायी बहुत गहरी हो चुकी है। मुलायम सिंह को यह अच्छी तरह से समझना होगा कि अब जनता नये चेहरों की ओर आकर्षित हो रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की आम जनता विशेषकर युवाओं के बीच अच्छी छवि बन चुकी है। सपा मुखिया अपने लिए व अपने भाई शिवपाल के लिए चाहे जितने दावे करें अब जनता के बीच वह जोर नहीं चलने वाला। सपा मुखिया को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि अंसारी परिवार व गायत्री प्रसाद प्रजापति की तारीफ करके कोई नेक काम नहीं किया है। अब जनता राजनीति में विकास के साथ स्वच्छता और शुचिता की राजनीति को पसंद कर रही है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस पूरे हंगामे के बीच अपनी छवि को चमकाने में पूरी तरह से सफल तो रहे हैं, लेकिन अब उनके लिए आगे का रास्ता कांटों भरा हो गया है। प्रदेश के राजनैतिक इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री का सार्वजनिक रूप से अपमान किया गया है। समाजवादी पार्टी के सभी शीर्ष नेताओं की कलई पूरी तरह से खुल चुकी है। जहां मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विकास के रथ को चलाकर अपना मार्ग निष्कंटक बना रहे थे, वहीं अब मार्ग कठिन हो गया है। चाचा-भतीजे का खेमा एक-दूसरेे को दलाल बता रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी हालत में अमर सिंह व उनके समर्थकों को नहीं छोड़ेंगे।

समाजवादी दल का कोहराम सभी विपक्षी दलों को रास आ रहा है। वहीं समाजवादी दल के नेताओं के बीच चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। आज कार्यकर्ता पूरी तरह से भ्रमित हो चुका है तथा दो फाड़ में वह साफ खड़ा दिखायी पड़ रहा है। अगर अभी किसी प्रकार से दल का विभाजन टल भी जाता है तो कुुछ नेता, विधायक व सांसद अपना अलग रास्ता चुन भी सकते हैं। इस पारिवारिक दंगल के कारण समाजवादी पार्टी अब चुनाव प्रचार में काफी पीछे चली गयी है। अभी तो दल में यही नहीं तय हो पा रहा है कि टिकट वितरण में किसका वर्चस्व रहने वाला है तथा किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा?

उधर दो दिनों से जारी बैठकों और हंगामों के बीच सपा मुखिया मलायम सिंह यादव ने पे्रस वार्ता में दो-तीन बातों को स्पष्ट कर दिया है जिसके अनुसार अब रामगोपाल यादव की सपा में वापसी नहीं होगी और न ही अमर सिंह को पार्टी से निकाला जायेगा। सपा मुखिया की प्रेस वार्ता से जिस प्रकार से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दूर रहे उससे साफ संकेत जा रहा है कि समाजवादी परिवार में ‘आॅल इज वेल’ नहीं रह गया है। सपा मुखिया ने जहां मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को साफ संकेत दे दिया है कि उनकी कोई बात अब नहीं सुनी जायेगी वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार में बर्खास्त मंत्रियों की वापसी पर अब अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ही करना है। सपा मुखिया मुलायम सिंह लाख दावे कर लें कि समाजवादी परिवार एक है, उनकी पार्टी एक है, वह नहीं टूट सकती, लेकिन यह सब केवल एक बयानबाजी ही है।

सपा मुखिया को सबसे अधिक चिंता आगामी चुनावों की तैयारी को लेकर है, क्योंकि अब समाजवादी पार्टी चुनाव प्रचार में बहुत पिछड़ चुकी है। जिस समय इस दल को जनता के काम करते हुए विकास के नारे के साथ जनता के बीच जाना था उस समय यह परिवार आपस में ही संग्राम करता हुआ दिखायी पड़ रहा है। मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री को दबाव में लेने व झुकाने का प्रयास किया है। वह यह मान रहे हैं कि प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में उनके नाम पर ही सपा को बहुमत मिला था, जबकि जो लोग हंगामा कर रहे हैं, नारे लगा रहे हैं तथा साजिश रच रहे हैं, उनके पास दस वोट भी अपने नहीं हैं। वहीं अब दूसरी स्थिति यह भी है कि आज की तारीख में सपा मुखिया मुलायम सिंह, शिवपाल यादव ओैर अमर सिंह के साथ भी दस वोट नहीं रह गया है। समाजवादी कलह से सब कुछ विवाद में चला गया है।

मृत्युंजय दीक्षित