लघुकथा

लघुकथा : सुहानी भोर

भीखू कुम्हार बहुत उत्साहित था इस बार आने वाले दीपावली के पर्व पर, हर बार की तरह इस  बार भी उसने पूरी लगन कारीगरी और भक्ति से एक एक दिए और मूर्ति को सांचे में ढाला था आखिर लक्ष्मी जी गणेश जी की पूजा की निमित्त होता है ये सब | उत्साहित था कि इस बार लोग स्वदेशी   वस्तुओं का प्रयोग करेंगे पूजन में, विदेशी का नहीं | भीखू के लिए तो राजनीति अर्थशास्त्र वगैरह मात्र एक शब्द थे वो तो ये सोच रहा था कि ठीक ही तो है, लोगो को पूजा में विदेशी चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, आखिर उन चीजों में वो श्रद्धा वो भाव कहां रचा बसा होगा | खैर जो हो आज धनतेरस था और भीखू मन में उमंग भक्ति श्रध्दा और उम्मीद लिए हाट पहुँचा था | अपने साथियों की आँखों में भी उसे अपने ही  सपने तैरते नजर आये कि इस बार त्यौहार की खुशियाँ उनके घरों की चौखट भी चूमेंगी, पिछले कई सालों से तो विदेशी वस्तुओं ने जैसे जीवन का सत्व ही निचोड़ कर निकाल दिया था उनकी देह से, किन्तु साथ ही एक अनजाना भय भी बसा था वहां  कि क्या लोग सचमुच कुछ अधिक मूल्य देकर भी उनके बनाये दिए, मूर्ति आदि ख़रीदेंगे | धीरे धीरे बाज़ार की रौनक के साथ उनके चेहरों की रौनक भी बढ़ती रही, उनकी आशंकायें निर्मूल सिद्ध हुईं और शाम तक सभी के चेहरों पर आत्मसंतोष और ख़ुशी का भाव तैर रहा था, सभी आश्वस्त नजर आ रहे थे कि उनके घरों में भी खुशियों के दिए जलेंगे, सुखद एहसास की रंगोली उनके द्वारे भी सजेगी |  जब भीखू घर लौट रहा था तो उसका चेहरा विजय के भाव से दमक रहा था, उसके बच्चों की खुशियाँ उसकी आँखों में चमक रही थीं |
अतुल भारती

अतुल भारती

इलाहाबाद बैंक में मुख्य प्रबंधक, कोलकाता