गीतिका/ग़ज़ल

हंगामा है क्यूँ

हंगामा है क्यूँ मचाया
बस नोट ही बंद हुयी है

सोयी थी सियासत कल तक
अब बाँह चढ़ाये अड़े हैं
अरबों रखनेवाले भी
लाइन में देखो खड़े हैं

कुछ रिश्ते भी हैं टूटे
कुछ साँसें बंद हुयी हैं
हंगामा है क्यूँ मचाया ……

ममता की है ममता जागी
पप्पू ने भी फेंके पासे
दिल्ली के सी एम् ने भी
जनता को दिए हैं झांसे
भाषण भी दिए सबने और
आंसू भी हैं खूब बहाए
सौ जुगत लगायी सबने
पर काम नहीं कुछ आये
चोरी डाका बेईमानी की
दुकान ही बंद हुयी है
हंगामा है क्यूँ मचाया ………

थोड़े दिन की है परेशानी
फिर होंगे दिन भी सुनहरे
खुशियों की किरण फैलेगी
हट जाएँ गम के अँधेरे
उम्मीद बढ़ी है सबकी
नफ़रत ही मंद हुयी है
हंगामा है क्यूँ मचाया ……..

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।